भाषा अवधी और लिपि गुरुमुखी, पंद्रह साल की मेहनत से हर्ष ने लिखी श्रीरामचरितमानस
अब गुरुमुखी लिपि में भी श्रीरामचरितमानस पढ़ने को मिलेगी।हर्ष कुमार हर्ष ने महर्षि तुलसी दास जी के देवनागरी लिपि में लिखे श्रीरामचरितमानस का गुरमुखी में लिप्यंतरण किया है।
पटियाला [सुरेश कामरा]। भगवान श्री राम के आदर्श, कर्तव्य परायणता व राम राज्य की महिमा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पटियाला के वरिष्ठ साहित्यकार हर्ष कुमार हर्ष ने सार्थक पहल की है। उन्होंने महर्षि तुलसी दास जी के देवनागरी लिपि में लिखे श्रीरामचरितमानस का गुरमुखी लिपि में लिप्यंतरण किया। यानी इसकी भाषा तो अवधी ही है, लेकिन लिपि देवनागरी के बजाय गुरमुखी कर दी गई है। इसके लिए सालों तक शोध की और करीब 15 साल की कड़ी मेहनत के बाद इस महान कार्य को पूर्ण किया।
हर्ष बताते हैं कि 1990 में इस ग्रंथ का लिप्यंतरण करना शुरू किया, जो 2005 में पूरा हुआ। जालंधर के अमित पॉकेट बुक्स प्रकाशक ने 930 पन्नों के उनके ग्रंथ के भाग एक की 20 हजार कॉपियां प्रकाशित कीं। कुछ समय पहले भाग दो भी प्रकाशित हुआ है। बुधवार को उन्होंने अपने इसी ग्रंथ की कॉपी डिप्टी कमिश्नर कुमार अमित को सौंपी और इससे जुड़े अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि ग्रंथ की खूबसूरती है कि तुलसी दास जी की तरफ से देवनागरी लिपि में लिखे ग्रंथ की भाषा अवधी है। उन्होंने भी अपने गुरमुखी लिप्यंतरण किए ग्रंथ की भाषा अवधी ही रखी है। कठिन शब्दों का अर्थ हर पेज के फुटनोट में दिया है।
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हस्तलिखित पुस्तकें टटोलीं, फिर मिला शत्रुघ्न के परिवार का इतिहास
हर्ष कुमार बताते हैं कि ग्रंथ मेंं जिन नामों का वर्णन है, उनके पूरे परिवार की भी जानकारी दी है। श्री राम जी के भाई लक्ष्मण व भरत के परिवार की जानकारी तो कई पुस्तकों व ग्रंथों से मिल गई, लेकिन शत्रुघ्न के परिवार की जानकारी नहीं मिल रही थी। पहले तो परिवार की जानकारी ग्रंथ में शामिल करने का विचार छोड़ दिया, लेकिन मन नहीं माना तो कई दिन तक सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी में पड़ी हस्तलिखित पुस्तकों को टटोला तो जानकारी मिल गई। ये कुछ दिन इन 15 सालों के सफर के सबसे पीड़ादायक व सुकून देने वाले दोनों तरह के पल थे।
इन ग्रंथों की ली सहायता
पटियाला की सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी में पड़ी हस्तलिखित पुस्तकें टटोलने को अलावा महर्षि वाल्मिकी जी की रामायण, हिंदू मिथिहास कोष, सीता निष्कासन, पंजाब कोष भाग 1-2, गुरु शब्द रत्नाकर के अलावा दर्जनों ग्रंथ पढ़े।
इसलिए आया विचार
पवित्र ग्रंथ को गुरमुखी में लिप्यंतरण करने के विचार पर हर्ष कहते हैं कि प्रभु श्रीराम को हर धर्म के लोग मानते व पूजते हैं। इसी कारण उनके मन में विचार आया कि बहुत से लोग ऐसे हैं जो गुरमुखी जानते हैं और श्री राम जी के बारे में जानना चाहते हैं, ऐसे में उनको इससे वंचित क्यों रखा जाए। इससे न केवल अन्य धर्मों में भाईचारा बढ़ेगा बल्कि गुरमुखी लिपि पढ़ने वाले लोग भी इस ग्रंथ को जान सकेंगे।
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