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पर्यावरण को बचाने के लिए सरपंच ने लगवाया ईको गैस बेस्ड क्रिमेशन चैंबर

हिदू और सिख धर्म में मृत व्यक्ति के शव का संस्कार करना भारत में प्रसिद्ध पारंपरिक विधि है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 12:20 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 12:20 AM (IST)
पर्यावरण को बचाने के लिए सरपंच ने लगवाया ईको गैस बेस्ड क्रिमेशन चैंबर
पर्यावरण को बचाने के लिए सरपंच ने लगवाया ईको गैस बेस्ड क्रिमेशन चैंबर

जागरण संवाददाता, पटियाला : हिदू और सिख धर्म में मृत व्यक्ति के शव का संस्कार करना भारत में प्रसिद्ध पारंपरिक विधि है। हिदू बहुगिनती देश होने के नाते देश में बड़ी संख्या में अंतिम संस्कार के लिए हर साल 50 मिलियन से अधिक पेड़ों को काटा जाता है और लकड़ी का इस्तेमाल कर शव का संस्कार किया जाता है। पेड़ों की कटाई जहां इस समय ग्लोबल चिता का विषय बना हुआ है, वहीं संस्कार के समय लकड़ी जलाने से पैदा होने वाला प्रदूषण इस चिता को और गंभीर बना देता है। इसी के मद्देनजर पटियाला के गांव छोटी बठोई की पंचायत ने एक नई पहल करते हुए गांव की श्मशानघाट में ईको गैस बेस्ड क्रिमेशन चैंबर लगाया है। इसके तहत गांव वासियों को रिवायती तरीके से संस्कार करने की बजाय एक नई ऑप्शन उन्हें प्रदान की है। इसके तहत मात्र 500 से 700 रुपये में संस्कार किया जा सकता है।

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गांव छोटी बठोई के पूर्व सरपंच रणधीर सिंह ने बताया कि उनके पिता और वह पर्यावरण प्रेमी हैं। वह चाहते थे कि रोजाना संस्कार के लिए इस्तेमाल हो रही लकड़ी को किसी तरह कम किया जा सके। इसी के तहत उन्हें ईको गैस बेस्ड क्रिमेशन चैंबर के बारे में पता चला। इसके बाद उन्होंने उस समय के सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी से चर्चा की और उनके सहयोग से गांव में ईको गैस बेस्ड क्रिमेशन चैंबर लगा दिया। रणधीर सिंह ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए दस लाख रुपये से ज्यादा का खर्च हो चुका है। इसमें दो लाख की सहायता सांसद से मिली जबकि बाकी ग्रांट न आने के कारण काम रुक गया। कुछ समय इंतजार करने के बावजूद जब ग्रांट नहीं आई तो उन्होंने खुद अपने पास से करीब साढे़ आठ लाख रुपये खर्च करके बनाकर साल 2014 में इसे चालू कर दिया। फिलहाल उन्हें उनके पैसे भी सरकार की ओर से नहीं मिले। अब तक इस चैंबर में 10 संस्कार किए जा चुके हैं, जबकि अन्य गांववासियों को इस संबंध अवेयर भी किया जा रहा है।

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पिता की बॉडी भी मेडिकल कॉलेज में कर चुके भेंट

रणधीर सिंह ने बताया कि वह और उनके पिता साधू सिंह पर्यावरण प्रेमी थे। इसके चलते उनके पिता ने इच्छा व्यक्त की कि उनकी मौत के बाद उनकी बॉडी को मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च के लिए भेंट कर दिया जाए और साल 2014 में उनकी मौत के बाद उन्होंने पिता का शव मेडिकल कॉलेज को भेंट कर दिया।


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