आरटी-पीसीआर की इन्कनक्लूसिव रिपोर्ट के कारण लोग हो रहे परेशान
पटियाला कोरोना वायरस की जांच के लिए किए जा रहा रैपिड एंटीजन टेस्ट (एआरटी) पर फ्लू लक्षणों वाले लोगों की टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद कई सवाल उठ चुके हैं।
जागरण संवाददाता, पटियाला :
कोरोना वायरस की जांच के लिए किए जा रहा रैपिड एंटीजन टेस्ट (एआरटी) पर फ्लू लक्षणों वाले लोगों की टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद कई सवाल उठ चुके हैं। वहीं, लैब में होने वाले टेस्ट की इन्कनक्लूसिव रिपोर्ट भी लोगों को दुविधा में डाल रही है। इस तरह के मरीज एक सप्ताह तक परेशानी भरे हालात से गुजरते हैं कि वे कोरोना संक्रमित हैं या नहीं। इस दुविधा की स्थिति में व्यक्ति को अपने घर में क्वारंटाइन रहना पड़ता है।
क्या है इन्कनक्लूसिव रिपोर्ट
मेडिकल कॉलेज की लेबोरेटरी में कोरोना वायरस की जांच (आरटी-पीसीआर) के लिए जब ऐसे किसी मरीज का सैंपल जाता है, जिसमें फ्लू के लक्षण या पॉजिटिव मरीज के संपर्क में आया हो या फिर बाहरी राज्य से आया है, इसके अलावा किसी अन्य बीमारी से गंभीर बीमार है और उसकी रिपोर्ट न तो नेगेटिव आती है और न ही पॉजिटिव आती है। यानि रिपोर्ट से यह पता ही नहीं लगता कि मरीज संक्रमित है या नहीं। लैब माहिर बताते हैं कि इस तरह की स्थिति तब सामने आती है जब किसी मरीज का सैंपल ठीक न लिया गया हो, सैंपल में लिया गया लारवा उचित मात्रा में न हो, लारवा पेकिग में कोई गड़बड़ी हो गई हो अथवा टेस्ट के समय कोई तकनीकी खामी आ गई हो। मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों के मुताबिक बहुत कम इस तरह के केस सामने आते हैं और अब तक छह महीने में करीब 200 मामले सामने आए हैं।
फाइनल रिपोर्ट तक रहना पड़ता है क्वारंटाइन
जिन मरीजों की रिपोर्ट इस तरह की आती है, तो उन्हें फाइनल रिपोर्ट तक क्वारंटाइन रहना पड़ता है। उसके फ्लू लक्षणों के मुताबिक डॉक्टर दवा लेने के लिए कहता है। लैब की रिपोर्ट इन्कनक्लूसिव आने पर मरीज को डॉक्टर कहते हैं कि उसका तीन-चार दिन के बाद फिर से टेस्ट किया जाएगा। पहले टेस्ट की रिपोर्ट आने में 24 से 36 घंटे का समय लगता है। उसके बाद इन्कनक्लूसिव रिपोर्ट आने पर उसे तीन-चार दिन के बाद फिर सैंपल लेने को कहा जाता है और उसके 24 से 36 घंटे के बाद फिर रिपोर्ट दी जाती है। साफ है इस तरह का व्यक्ति एक सप्ताह तक टेस्ट व रिपोर्ट में ही उलझा रहता है। एक सप्ताह तक काम पर नहीं गया
खालसा मोहल्ला के कुलदीप सिंह करियाना की दुकान पर नौकरी करता है। उसके टेस्ट की रिपोर्ट इस तरह की आई थी। उसने बताया कि छह दिनों तक परेशान रहा और घर पर बैठा रहा। पहले टेस्ट की रिपोर्ट क्लीयर न आने पर तीन दिन के बाद उसका दोबारा टेस्ट लिया गया, जिसके बाद साफ हुआ कि वह नेगेटिव है। वो सात दिनों तक दुकान पर नहीं जा सका। यह रूटीन प्रक्रिया है : सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ. हरीश मल्होत्रा ने कहा कि टेस्ट करना और उसका कई बार फाइनल नतीजा सामने नहीं आना रूटीन प्रक्रिया है। काम करते वक्त किसी से भी कमी रह सकती है। इस लिए उस व्यक्ति का टेस्ट दोबारा किया जाता है।