प्रशासन पराली जलाने वालों के खिलाफ एक्शन में
नाभा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद नाभा प्रशासन ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कदम उठाना शुरू कर दिया है। इस बारे में 12 किसानों के खिलाफ केस दर्ज किया है।
जेएनएन, नाभा
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद नाभा प्रशासन ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है। एसडीएम सूबा सिंह के नेतृत्व में कृषि विभाग, पुलिस प्रशासन और राजस्व विभाग के कर्मी नाभा क्षेत्र के उन गांवों में आग बुझाने के लिए जा रहे हैं, जहां कहीं पराली को आग लगी दिखाई देती है। इस दौरान फायर ब्रिगेड के कर्मी जहां आग बुझा रहे है, वहीं पराली में आग लगाने वालों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं। दो दिन में नाभा प्रशासन ने लगभग 12 मामले दर्ज किए हैं।
वहीं दूसरी ओर सरपंचों की ग्रामीण विकास विभाग के साथ बैठकें करा उन्हें जिम्मेदार ठहराए जाने के बारे में बताया जा रहा है कि वे किसानों को समझाने के लिए आगे आएं तथा पराली न जलाने का उल्लघंन करने वाले किसानों की जानकारी प्रशासन को दें। जिसका अनुपालन न करने पर सरपंच पर कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। नाम न छापने की शर्त पर एक सरपंच ने इसका विरोध करते हुए कहा कि गांव की इकाई को समझे बिना प्रशासन अब नींद से जागा है और गांव में नए विवादों को जन्म दे रहा है।
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किसानों ने जताया विरोध
प्रशासन की कार्रवाई तेज करने पर किसानों ने अपना विरोध तेज करना शुरू कर दिया है। गांव ककराला में पटवारी गुरप्रीत सिंह को भारतीय किसान यूनियन उगराहां के सदस्यों ने गत दिवस बंधक बना लिया गया था, जिसे पुलिस द्वारा इंसाफ दिलाने के भरोसे पर छोड़ा गया। जत्थेबंदी के नेता हरमेल सिंह ने बताया कि गांव ककराला की सहकारी सभा में केवल एक ही हैप्पीसीडर है और 500 किसान शामिल हैं। उन्होंने मशीनों के अपर्याप्त होने का आरोप लगाया और कहा कि सरकार ने सबसिडी के नाम पर लोगों को पैसा भेजा और मशीन की कीमत बढ़ाकर सहकारी परिषद और किसानों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
उधर, बुधवार को भाकियू राजेवाल ने ब्लॉक प्रधान अवतार सिंह के नेतृत्व में प्रशासनिक कार्यालय के बाहर धरना देकर अपना रोष व्यक्त किया। इस दौरान किसानों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और कहा कि पहले से ही कर्ज में डूबे किसानों पर भारी बोझ डालना गलत है। यूनियन राज्य महासचिव ओंकार सिंह अगोल ने कहा कि प्रशासन और सरकार किसान यूनियनों को बदनाम कर रहे हैं। प्रदूषण की पहली मार किसान व उनके परिवार को झेलनी पड़ रही है। सचिव घुम्मन सिंह ने कहा कि सरकार को बासमती का न्यूनतम मूल्य तय करना चाहिए। इससे पराली की कोई समस्या नहीं होगी अन्यथा पराली संभालने का खर्च इस फसल के न्यूनतम मूल्य में जोड़े। उन्होंने कहा कि केवल 200 रुपये का मूल्य बढ़ाने से सरकार की लागत में 3000 करोड़ रुपये का इजाफा होगा, जबकि कर्मचारियों के नए वेतन आयोग ने 16000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च को आसानी से स्वीकार कर लिया। किसानों ने चेतावनी दी है कि सरकार को उन पर कोई कार्रवाई करने से पहले अपने दायित्वों को पूरा करे।