पाप-पुण्य के बीच तय होते हैं लकड़ी के भाव
जागरण संवाददाता पठानकोट श्मशानघाट में इससे पहले मैंने कभी इतनी लाशें अंतिम संस्कार के
जागरण संवाददाता, पठानकोट :
श्मशानघाट में इससे पहले मैंने कभी इतनी लाशें अंतिम संस्कार के लिए आते हुए नहीं देखीं। हर रोज यहां पर तीन से चार शव आ जाते हैं। दस पेड (अंतिम दाह संस्कार वाली जगह) हैं और सभी पहले से भरी हुई हैं। चार दिन बाद फुल चुगने के बाद यह खाली होंगे। इसलिए परिसर के अंदर ही खाली स्थानों पर अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं। यह कहना है स्वर्ग आश्रम के शिव मंदिर के पुजारी प्रसाद गिरी का।
गिरी बताते हैं कि तीन माह पहले तक दो-दो दिनों तक यहां अंतिम संस्कार के लिए कोई नहीं आता था। अब अंतिम संस्कार के लिए शव आ रहे हैं, लेकिन भीड़ नहीं है। क्या करें स्थिति ही ऐसी है। अब तक कितनों का संस्कार हुआ है इस बारे में जानकारी नहीं है। क्योंकि मैं लिखा पढ़ी नहीं करता और न ही किसी को रोकता हूं। सभी को तो इसी मिट्टी में जाना है क्यों रोकूं। 11 साल से यहां पर हूं।
दरअसल, लगातार बढ़ रहे कोरोना केस के चलते मौतों को आंकड़ा भी बढ़ने लगा है। पिछले एक सप्ताह के दौरान हर रोज तीन से चार लोगों की कोरोना से मौत हो रही है। सोमवार को तो कोरोना से 11 लोगों ने दम तोड़ दिया। मौत के कारण श्मशानघाट में अंतिम संस्कार करने के मामले बढ़ गए हैं। वहीं दूसरी ओर अंतिम संस्कार के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली लकड़ी की मांग भी बढ़ी है। इसके साथ ही अंतिम संस्कार में प्रयोग होने वाली सामग्री की भी मांग बढ़ी है। लेकिन कारोबारियों ने जिले में लकड़ी की कीमत नहीं बढ़ाई है। लगातार तीन साल से छह सौ रुपये प्रति क्विटल बेची जा रही है।
पाप के भागीदार नहीं बनना चाहते
स्वर्ग आश्रम के समीप ही लकड़ी के तीन कारोबारी हैं। इन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में लकड़ी का दाम बढ़ाकर हम पाप के भागीदार नहीं बनना चाहते। कुछ कम कमा लेंगे, जिससे हमारा घर चल जाए। इस काल में तो सभी को मिलकर काम करना होगा। जिला प्रशासन अगर कहे तो हम कम रेट पर भी लकड़ी देने को तैयार हैं। ये लोग हिमाचल और जुगियाल से लकड़ी की खरीद करते हैं। यहां पर सीएनजी या इलेक्ट्रिक फ्यूनरल मशीनों से अंतिम संस्कार की व्यवस्था नहीं है। शहर में दो श्मशान घाट हैं, जहां पर अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं।
जरूरतमंद को फ्री भी दे रहे लकड़ी
लकड़ी कारोबारी विनोद ने कहा कि लकड़ी के रेट छह सौ रुपये प्रति क्विटल है। कभी कभी तो वह अंतिम संस्कार के लिए फ्री में भी लकड़ी दे देते हैं। लकड़ी कारोबारियों का कहना है कि इन दिनों फिक्स रेट लेकर क्या करेंगे। दाल-रोटी चल जाए यही बहुत है। कमाई तो बाद में भी कर लेंगे।
जुगियाल से मंगाते हैं लकड़ी
लकड़ी कारोबारी सोनू कुंदरा ने बताया कि वह जुगियाल से लकड़ी मंगाते हैं। अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार करवाने के लिए छह सौ की बजाय पांच सौ रुपये प्रति क्विटल के हिसाब से लेते हैं। कोरोना काल में वह कम रेट पर भी लकड़ी दे देते हैं।