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हरीश पाल शर्मा ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों के छुडाए थे छक्के

गांव चडोली में 13 जैक राइफल के वीर सपूत हरीश पाल शर्मा की वीरगाथा से लोग भलीभांति परिचित हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 11:50 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 06:11 AM (IST)
हरीश पाल शर्मा ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों के छुडाए थे छक्के
हरीश पाल शर्मा ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों के छुडाए थे छक्के

संवाद सहयोगी, नरोट जैमल सिंह : गांव चडोली में 13 जैक राइफल के वीर सपूत हरीश पाल शर्मा की वीरगाथा से लोग भलीभांति परिचित हैं। उन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सीमा पर पाकिस्तानी दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए वीरगति प्राप्त की थी। शहीद हरीश पाल शर्मा के गांव चडौली में उक्त शहीद के नाम पर सरकार की ओर से गांव के बाहर एक जादगरी गेट का निर्माण भी करवाया गया है। अब सरकार की अनदेखी के चलते अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। शहीद की माता राज दुलारी ने नम आंखों से बताया कि हरीश पाल शर्मा को बचपन से ही देश भक्ति का जज्बा था वह शुरू से ही उनसे सेना में भर्ती होने की बातें किया करता था। बमियाल के सरकारी स्कूल से 12वीं की कक्षा पास करने के बाद हरीश पाल शर्मा मात्र 18 वर्ष की आयु में ही सेना की 13 जैक राइफल में 1987 में भर्ती हो गए थे। शादी के कुछ समय बाद ही शहीद हरीश पाल शर्मा की पोस्टिग करगिल में हो गई थी। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। शहीद की माता ने बताया कि जब उसकी पार्थिक शरीर को गांव में अंतिम विदाई के लिए लाया गया था तो पूरे गांव में मातम छा गया था। 30 साल की उम्र आनंद मानने की होती है। शादी के डेढ़ साल बाद ही हरीश पाल शर्मा करगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। शहीद होने के बाद उस समय की मौजूदा सरकार की ओर से गांव के लोगों की मौजूदगी में उन्हें बहुत बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाकर यह भरोसा दिलाया था कि पूरे गांव की नुहार बदल दी जाएगी। इसमें यह बताया गया था के स्थानीय गांव में एक स्कूल को शहीद के नाम का दर्जा दिया जाएगा। शहीद के नाम पर एक लाइब्रेरी भी बनवाने का दावा किया था, परंतु उस समय की सरकार के यह दावे वायदे शहीद के 20 साल बीत जाने के बाद भी हवा-हवाई साबित हुए। गांव के सरपंच रविद्र शर्मा ने बताया कि शहीद हरीश पाल शर्मा पूरे गांव के लाड़ले थे। वह जब भी छुट्टी लेकर आते थे तो पूरे गांव का हाल-चाल जानते थे। वह लोगों के दुख सुख में शरीक होते थे। शहीद हरीश पाल शर्मा के नाम पर उनकी माता ने गांव वालों के सहयोग से एक मंदिर की स्थापना की थी। इसमें आज भी लोग श्रद्धा पूर्ण नमन होकर माथा टेकते हैं और पूरे गांव की भलाई के साथ-साथ शहीद के परिवार की भी भलाई की दुआ करते हैं।

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