बचेगी धरा, पॉलीथिन नहीं नारियल के खोल में रोपे जाएंगे पौधे
भूमि में पॉलीथिन के साथ नहीं बल्कि नारियल के खोल में पौधे रोपे जा रहे हैं।
राज चौधरी, पठानकोट : धरती की उर्वरकता को अब पॉलीथिन नहीं निगलेगा। भूमि में पॉलीथिन के साथ नहीं, बल्कि नारियल के खोल में पौधे रोपे जा रहे हैं। नर्सरी में पौधों की नर्सरी बेकार पड़े नारियल के खोल में तैयार की जा रही है। वन विभाग ने पर्यावरण संरक्षण में यह तरकीब निकाली है। विभाग का यह अनूठा प्रयोग सार्थक बना है और पठानकोट में नारियल के खोल में पौधे न केवल उग रहे हैं, बल्कि इन्हें बरसात के सीजन में रोपने का काम भी जारी है। प्रथम चरण में एक हजार पौधे विभाग की नर्सरी में पंजाब में भूमि को बंजर बनने से रोकने में यह विधि मददगार साबित हो रही है। विभाग ने संकल्प लिया है कि अब सभी पौधे इसी विधि से तैयार होंगे। पॉलीथिन का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं होगा। पंजाब में यह पहली बार इस तरह प्रयास किया गया है, जो सफल रह है।
ऐसा आया आइडिया
पठानकोट में वन विभाग ने यह कदम भूमि का उपजाऊ क्षमता को बचाने के लिए उठाया है। विशेष यह है कि विभाग ने इसके लिए कोई राशि भी खर्च नहीं की है। पठानकोट - डल्हौजी मार्ग पर विभाग की नर्सरी है। इस सड़क पर नारियल बिक्रेता अपना व्यवसाय करते हैं। ग्राहक नारियल पानी पीने के बाद इनके खोल को पास की भूमि में फेंक देते हैं। विभागीय अधिकारियों ने नर्सरी में भ्रमण के दौरान पाया कि नारियल के खोल बेकार में पड़े हैं। अधिकारियों ने मंथन किया कि इन नारियल खोल में पौधे उगाए जाएं, उनका यह प्रयास सार्थक रहा। अब एक हजार खोल में पौधों की नर्सरी तैयार की गई है। विभाग ने नारियल विक्रेताओं से संपर्क किया है कि इनकी बिक्री के बाद खोल को संभालकर रखें, कर्मी इन्हें खुद ही एकत्रित कर प्रयोग में लाएंगे।
कोट्स
पहले पौधे पॉलिथिन में तैयार किए जाते थे, इस कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म हो रही थी। नारियल के खोल को दो बार भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ समय के बाद यह सड़कर मिट्टी में ही मिल जाते हैं। इससे पौधा भूमि में अच्छी ग्रोथ से उगता ही है और उर्वरकता पर कोई असर नहीं पड़ता। पर्यावरण संरक्षण की मुहिम में विधि सहायक साबित होगी।
डॉ. संजीव तिवारी, डीएफओ