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पठानकोट की रेणु बाला पत्थरों में डालती हैं जान, हुनर से पाया मुकाम; तीन बार मिला अवार्ड

रेणु कहती हैं कि बचपन से मूर्तिकला में लगन पिता जी के प्रोत्साहन और कुछ बड़ा करने की चाह ने उन्हें यह मुकाम दिलाया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 10:39 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 12:32 PM (IST)
पठानकोट की रेणु बाला पत्थरों में डालती हैं जान, हुनर से पाया मुकाम; तीन बार मिला अवार्ड
पठानकोट की रेणु बाला पत्थरों में डालती हैं जान, हुनर से पाया मुकाम; तीन बार मिला अवार्ड

विनोद कुमार, पठानकोट। साढ़े चार फुट की लड़की बड़ी-बड़ी मूर्तियां कैसे गढ़ेगी..., कभी इस ताने को झेलने वाली रेणु बाला आज मूर्तिकला में जाना- पहचाना नाम हैं। गत दस वर्षों में उन्होंने सैकड़ों मूर्तिंयां गढ़ीं, जो देश के विभिन्न शहरों का सौंदर्य बढ़ा रही हैं। बड़े-बड़े दफ्तरों और होटलों में उनके आर्ट ने रौनक बढ़ाई। जम्मू-कश्मीर सरकार से तो उन्हें तीन बार श्रेष्ठ मूर्तिकार का अवार्ड मिला।

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रेणु कहती हैं कि बचपन से मूर्तिकला में लगन, पिता जी के प्रोत्साहन और कुछ बड़ा करने की चाह ने उन्हें यह मुकाम दिलाया। बचपन में चाक, कोयले और मिट्टी से कलाकृतियां बनाने वाली साढ़े चार फुट की वह लड़की आज अपने हुनर से पत्थरों में जान भर रही है, जिसका छोटा कद अब दुनिया को अचंभित नहीं करता बल्कि उसका हुनर वाहवाही पाता है...। बकौल रेणु, चाक से शुरू होकर पत्थर की मूर्तियां उकेरने तक का यह सफर आसान नहीं रहा। यह कला मुझे किसी ने सिखाई नहीं, बल्कि एकलव्य की तरह मैंने खुद सीखी। वर्ष 2010 में जम्मू यूनिवर्सिटी से स्नातक स्नातक किया। इसके बाद राजस्थान यूनिर्वसिटी से विजुअल आर्ट्स में मास्टर्स डिग्री की, जिसमें गोल्ड मेडलिस्ट रही। वर्ष 2015 में नेट पास किया। राजस्थान यूनिर्वसिटी में करीब डेढ़ साल असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी भी की। शौक मूर्ति बनाने का था तो नौकरी छोड़ उसी में रम गई।

पठानकोट, पंजाब निवासी रेणु बाला बीते दस वर्षों में पत्थर, धातु और लकड़ी से सैकड़ों मूर्तिंयां तैयार कर चुकी हैं। बताती हैं, मेरी राह में कई मुश्किलें भी आईं। मेरा कद साढ़े चार फीट है। शुरुआती दौर में विदेश से आने वाले मूर्तिकार कई बार मेरा मजाक उड़ाते थे। वह कहते थे कि साढ़े चार फीट की लड़की पत्थर की ऊंची मूर्ति कैसे बना पाएगी। मैंने हिम्मत नहीं हारी और लक्ष्य की तरफ बढती गई। इस लगन और मेहनत का इनाम मिला।

दरअसल, मूर्तिकला में लड़कियों की व्यावसायिक उपस्थिति नगण्य है। वहीं, रेणु बाला ने जिस तेजी से अपना स्थान इसमें बनाया है, वह प्रेरक है। कहती हैं, मुझे बचपन से ही कलाकृतियां बनाने का शौक था। ये कलाकृतियां ही मेरी दोस्त थीं। मेरे पिता स्व. मुकुंद लाल अकसर कहा करते थे कि अपनी मंजिल पाने के लिए तुम जी-जान लगा दो। मैं तुम्हारे साथ हूं। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन से मेरी मेहनत भी रंग लाई। आज कई शहरों में सुंदरीकरण के लिए लगाई गईं कई कलाकृतियां मेरी ही बनाई हुई हैं। रेणु अपनी सफलता का श्रेय जम्मू यूनिवर्सिटी के पद्मश्री प्रोफेसर राजेंद्र टीकू को भी देती हैं। कहती हैं कि उनके मार्गदर्शन ने मुझे यह मुकाम दिलाया।

रेणु ने बताया कि मैमथ (हाथी) के दो दांतों को नया स्वरूप देने में उन्होंने सफलता प्राप्त की है, जिसे सराहा जा रहा है। मैमथ के दो दांत टूट कर 15 टुकड़ों में बंटे थे। इनमें एक दांत सात फीट का था, जिसका वजन 90 किलो के करीब था। दूसरा आठ फीट लंबा था और उसका वजन एक क्विंटल से ज्यादा था। रेणु की बनाई कलाकृतियों के बॉलीवुड सितारे भी मुरीद हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और कर्ण सिंह जैसे नेताओं के घरों में भी रेणु की बनाईं मूर्तियां सजी हुई हैं।


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