जो अंतर्जगत में प्रभु प्रकाश का दर्शन कराए वही पूर्ण गुरु
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जागरण संवाददाता, पठानकोट
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा पठानकोट स्थित आश्रम में साप्ताहिक कार्यक्रम करवाया गया। गुरु आशुतोष महाराज के शिष्य जसपाल ने कहा कि आज अधिकांश मनुष्य ईश्वर को मानते हैं। भिन्न-भिन्न तरीकों से पूजा-अर्चना करते हैं। नित्यप्रति सत्संग, कथा सुनते व धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन भी करते हैं। ऐसा करके सोचते हैं कि वे धार्मिक हो गए हैं। लेकिन, यदि वे धार्मिक हैं, तो उनके व्यक्तित्व में धर्म के दस लक्ष्ण क्यों दृष्टिगोचर नहीं हो रहे। समाज अनैतिकता का खुला रंगमंच क्यों बना दिख रहा है। इसलिए प्रश्न है कि मनुष्य के भीतर धर्म के दस लक्ष्ण किस प्रकार प्रकट हों। वह किस प्रकार सही अर्थो में धार्मिक बने। वास्तव में धर्म है क्या।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि धर्म ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति है। ईश्वर की यह साक्षात अनुभूति प्रदान कर यदि कोई सच्चे अर्थो में हमें धार्मिक बना सकता है, तो वे हैं समय के पूर्ण गुरु जिन्हें संत, महापुरूष, कामिल मुर्शिद आदि भी कहा गया है। लेकिन, आज ऐसे पूर्ण गुरु हैं कहाँ। जिज्ञासुओं के लिए यह सबसे बड़ी समस्या है। ऐसा नहीं है कि आज गुरुओं का अकाल पड़ा है। आजकल तो हर गली-नुक्कड़ में गुरुओं के मठ व आश्रम खुले हुए हैं। सवाल है कि क्या हमें इनमें से किसी को भी गुरु रूप में धारण कर लेना चाहिए। क्या ये सभी पूर्ण व सच्चे हैं कि नहीं क्योंकि यदि होते तो समाज की तस्वीर इतनी बदसूरत और विकृत न होती। यह भी सच है कि नकल उसी की होती है, जिसकी असल भी हो।
गुरु आशुतोष महाराज अकसर समझाते हैं कि बाजार में 500 रुपये का नकली नोट चल सकता है, 400 का नहीं। क्योंकि 500 रुपये का असली नोट होता है, 400 का नहीं। इसी प्रकार नकली गुरुओं का अस्तित्व संकेत करता है कि कहीं न कहीं संसार में सच्चे गुरु भी हैं। बस उन्हें जानने के लिए हमें उनकी पहचान चाहिए। अत: आज समाज को जरूरत है एक ऐसे संत की शरण में जाने की ताकि हम हमारा सही मायने में उत्थान कर पाएं।