प्रत्याशी के बिना गिरे वोट बैंक को सुधारने की प्लानिग नहीं कर पा रही भाजपा
प्रत्याशी घोषित न होने के कारण संसदीय हलके में भाजपा फिलहाल उपचुनाव में मिली करारी हार को जीत में बदलने की प्लानिग नहीं कर पा रही है।
जासं, पठानकोट : प्रत्याशी घोषित न होने के कारण संसदीय हलके में भाजपा फिलहाल उपचुनाव में मिली करारी हार को जीत में बदलने की प्लानिग नहीं कर पा रही है। पार्टी के नेता संसदीय हलके में यूं तो लोगों के बीच दिख रहे हैं परंतु कंडीडेट घोषित नहीं होने के कारण वह लोगों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वोट मांग रहे हैं। उनका तर्क होता है कि हाईकमान जिसे भी टिकट दे जनता का समर्थन असल में प्रत्याशी को नहीं पीएम मोदी के हाथ मजबूत करने वाला होगा।
उप चुनाव में एक लाख 93 हजार वोट से हारे थे सलारिया
मतदान की तारीख तय है। संसदीय हलके में कांग्रेस के प्रत्याशी सुनील जाखड़ के नाम की घोषणा भी हो चुकी है। जाखड़ ने सवा साल साल पहले इसी संसदीय हलके से चुनाव एक बड़े अंतर से जीता था। यूं तो भाजपा संसदीय हलके से पिछले बीस साल में तीन चुनाव हारी परंतु तीन में से दो बार पार्टी की हार का मार्जिन बेहद कम रहा। दो साल बाद अब दोबारा चुनाव हैं। भाजपा को फिर से उसी प्रत्याशी के साथ भिड़ना है जिसने स्वर्ण सलारिया को एक लाख 93 हजार वोट से हराया था।
जनता जाखड़ के रिपोर्ट कार्ड पर करेगी फोकस
इसके विपरीत गुरदासपुर के सांसद सुनील जाखड़ के लिए भी मौजूदा चुनाव में रहा उतनी आसान नहीं है जितनी 2017 के उपचुनाव में थी। उपचुनाव में सुनील जाखड पंजाब के प्रधान थे और वह अब भी उसी पद पर आसीन हैं। तब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह का उन्हें पूरा समर्थन प्राप्त था और वह समर्थन उन्हें आज भी हासिल है। बावजूद इसके जाखड़ के हालात बदल चुके हैं। सुनील जाखड ने दो साल पहले का उपचुनाव अकेले नहीं लड़ा था। उस चुनाव मे उन्हें समर्थन और सहयोग करने के लिए पंजाब के सभी मंत्री और विधायक संसदीय हलके मे आन बैठे थे। खुद मुख्यमंत्री भी जाखड के चुनाव की डेली अपडेट लेते रहे थे। अब चूंकि जनरल चुनाव हो रहा है अतएव पंजाब के सभी मंत्रियों और विधायकों को अपने-अपने हलकों में भी काम करना पड़ेगा। इसके सिवा मतदान से पहले जनता जाखड़ के रिपोर्ट कार्ड पर भी फोकस करेगी।
राजनीतिक हलकों का दावा है कि दो साल के कार्यकाल में गुरदासपुर हलके में भी बहुत कुछ बदल सा गया है। लोगों की अपेक्षाएं जहां जाखड़ से बढ़ी हैं वहीं वह इस चुनाव को देश के ओवर आल चुनाव के साथ भी जोड़ कर देख रहे हैं। अतएव यही कारण है कि संसदीय हलके का चुनावी माहौल चुनाव के इकतालीस दिन पहले भी गरमा नहीं सका है। बहरहाल इस चुनाव की हवा संसदीय हलके की राजनीति को कौन सा मोड़ देती है, इसका पता तो तभी लगेगा जब भाजपा अपने प्रत्याशी को चुनाव मैदान में भेजेगी।