आज भी जिले के लोगों को चालान भुगतने के लिए जाना पड़ता है गुरदासपुर
आठ साल पहले पठानकोट जिला बना था तो ऐसा लगता था कि अब किसी भी काम के लिए गुरदासपुर नहीं जाना पड़ेगा।
जागरण संवाददाता, पठानकोट
आठ साल पहले पठानकोट जिला बना था तो ऐसा लगता था कि अब किसी भी काम के लिए गुरदासपुर नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन, बावजूद इसके आज भी कई ऐसे विभाग हैं जो पठानकोट शिफ्ट नहीं हो पाए जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि पठानकोट अभी भी जिला नहीं बल्कि तहसील स्तर का शहर है। यह बात व्यापार मंडल पठानकोट के प्रधान चाचा वेद प्रकाश व चेयरमैन भारत महाजन ने शनिवार को बैठक के दौरान कही। उन्होंने कहा कि जिला बनने के बाद भी शहरवासियों को कई कार्यों के लिए गुरदासपुर जाना पड़ता है, जो गलत है। वहीं सेंट्रल एक्साइज की ओर से व्यापारियों को सर्विस टैक्स के नाम पर भेजे जा रहे नोटिसों पर एतराज जताया गया। महासचिव अमित नैयर, कैशियर राजेश पुरी ने बताया कि डीटीओ का पद खत्म होने के बाद आज तक पठानकोट में रीजन ट्रांसपोर्ट अथार्टी (आरटीओ) अफसर की नियुक्ति ही नहीं हो पाई है। आरटीओ की नियुक्ति न होने की वजह से लोगों को अपने चालान भुगतने के लिए गुरदासपुर जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि पहले जब ट्रैफिक पुलिस चालान काटती थी तो लोग आसानी से पठानकोट में अपना चालान भुगत लेते थे। लेकिन, पिछले लगभग पांच-छह महीनों से लोगों को गुरदासपुर जाना पड़ता है। गुरदासपुर जाने में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि अक्सर आरटीओ या तो औचक चे¨कग पर गए होते हैं या फिर सरकारी मी¨टगों में व्यस्त होने की वजह से लोगों का सारा दिन बेकार हो जाता है। कई बार तो पूरा-पूरा दिन आरटीओ साहब नहीं मिलते ओर लोगों को अगले दिन जाना मजबूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान कारोबारियों को उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वह इस मसले पर शीघ्र ही विधायक अमित विज से मी¨टग कर पठानकोट में आरटीओ पद की नियुक्ति करवाने की मांग करेंगे।
महीने में 650 से 700 तक होते हैं चालान
जिला ट्रैफिक प्रभारी नरेश महाजन का कहना है कि हर महीने औसतन 650 से 700 के करीब नियमों की अवहेलना करने वाले वाहन चालकों के चालान किए जाते हैं। जिसमें ज्यादातर बिना हेलमेट, गलत पार्किंग और ऑटो चालकों की ओर से बीच रास्ते वाहन खड़ा कर देने के होते हैं। चालान काटने के बाद पुलिस की ओर से अपना एक कर्मी बाकायदा डाक लेकर गुरदासपुर आरटीओ कार्यालय भेजना पड़ता है। लोगों को अब पठानकोट के बजाय गुरदासपुर में चालान भुगतने के लिए जाना पड़ता है। जब तक पठानकोट में आरटीओ की स्थायी तौर पर नियुक्ति नहीं होती तब तक यह गुरदासपुर जाना पड़ेगा।
एक बार जाने पर 150 रुपये के करीब लगता है किराया
ट्रैफिक पुलिस की ओर से जब वाहन चालक का चालान किया जाता है तो उसे भुगतने के लिए यदि बस से जाया जाए तो आने-जाने पर 150 के करीब किराया लगता है। अगर अपने वाहन से जाया जाए तो 200 रुपए के करीब बनते हैं। गुरदासपुर आरटीओ कार्यालय में जाने पर कम से कम तीन घंटे लगते हैं अगर अधिकारी न मिले तो पूरा दिन भी बेकार हो जाता है। कई बार तो अधिकारी पूरा-पूरा दिन बैठक या फिर निरीक्षण पर होते हैं जिस कारण अगले दिन दोबारा जाना पड़ता है। आगे अधिकारी भले तीन सौ रुपए ही जुर्माना करके छोड़ दे लेकिन, दो दिन बेकार हो जाने का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है।
चालान भुगतने के लिए दो बार जाना पड़ा : अनिल महाजन
अभी हाल में आरटीओ कार्यालय में चालान भुगत कर आए ट्रांसपोर्टर अनिल महाजन निवासी करोली, ट्रांसपोर्टर रमेश कुमार निवासी मामून, सरकारी कर्मी रेलवे कॉलोनी अश्वनी शर्मा व भरोली कलां निवासी इंजीनिय¨रग छात्र निखिल सड़माल ने बताया कि जिला बनने के बाद भी लोग कई सुविधाओं से वंचित है। ट्रांसपोर्टर अनिल महाजन व रमेश कुमार ने कहा कि विगत दिनों वह अपना चालान भुगतने के लिए दो बार गुरदासपुर कार लेकर गए। पहली बार तो आरटीओ साहब चंडीगढ़ बैठक में थे, जिस कारण वह चालान नहीं भुगत पाए। अगले दिन जाकर चालान भुगता। उन्होंने कहा कि दो बार जाने पर उनका समय तो खराब हुआ ही साथ ही साथ पंद्रह सौ के करीब का खर्चा आ गया। सरकारी कर्मी अश्वनी शर्मा व इंजीनिय¨रग छात्र निखिल सड़माल ने कहा कि उन्हें भी अपना चालान भुगतने के लिए दो बार जाना पड़ा। उन्होंने कहा कि एक दिन छुट्टी लेकर जाना पड़ा जिससे अधिकारियों की बातें भी सुननी पड़ी। जबकि, निखिल सड़माल ने कहा कि पठानकोट में जल्द से जल्द आरटीओ की तैनाती की जाए।