आतंकवादियों पर मौत बनकर टूटे थे शहीद अरुण जसरोटिया
सुजानपुर निवासी शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया ने आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहादत दी थी।
संवाद सहयोगी, सुजानपुर : कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवादियों की चालों का मुंह तोड़ जवाब देते हुए भारत के वीर जवानों ने जीवन बलिदानों की आहुतियां दी हैं। इन जवानों में सुजानपुर निवासी शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया ने 27 वर्ष की आयु में ही अदम्य साहस का परिचय देते हुए आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त कर अपना नाम शहीदों की श्रृंखला में स्वर्ण अक्षरों से लिखवाया। वीर सपूत की शहादत को नमन करने के लिए सुजानपुर के कम्यूनिटी हाल में 26 सितंबर को 24वां श्रद्धांजलि समारोह सुबह साढ़े 10 बजे शहीद अरुण सिंह जसरोटिया चेरिटेबल ट्रस्ट तथा शहीद अरुण सिंह जसरोटिया सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल लड़कियों के सहयोग से किया जाएगा।
कार्यक्रम के कोऑर्डिनेटर कैप्टन बीआर शर्मा ने बताया कि कैप्टन अरुण जसरोटिया का जन्म सुजानपुर मे 16 अगस्त 1968 को पिता कर्नल प्रभात सिंह जसरोटिया माता सत्या देवी के घर में हुआ। बारहवीं तक की शिक्षा उन्होंने केन्द्रीय विद्यालय पठानकोट से पूरी की। वाल्य काल से देश की सेवा की भावना से ओत प्रोत जसरोटिया 1987 में भारतीय सेना की आठ विहार रेजीमेंट में भर्ती होकर देश की सेवा में जुट गए। 1992 में जसरोटिया ने नौ पैरा कमांडो मे शामिल होकर जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र कुपवाडा में तैनात हो गए। 15 सितंबर 1995 को उनकी सेना टुकड़ी को लोलाव घाटी में स्थित एक गुफा में आतंकवादियों के छुपे होने की सूचना मिली। कैप्टन जसरोटिया ने अपने साहस शूर वीरता का परिचय देते हुए 300 मीटर की कठिन चढ़ाई चढ़ कर आतंकवादियों पर मौत बनकर टूट पड़े और कई आतंकवादियों को मार गिराया। जिसमें कैप्टन जसरोटिया बुरी तरह से घायल हो गए। उन्हें उपचार के लिए पहले श्रीनगर उसके बाद दिल्ली में सेना के अस्पताल में ले जाया गया यहां पर दस दिन मौत से जूझने के बाद इस वीर सपूत ने 26 सितंबर, 1995 को वीरगति प्राप्त कर ली। उनकी इस बहादुरी के लिए देश के राष्ट्रपति ने मरणोपरांत अशोक चक्र से नवाजा। वहीं, पंजाब सरकार ने निशाने खालसा वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया।