इनके लिए पराली लाई खुशहाली, बिना आधुनिक मशीनों के खेत में एेसे मिलाई
कुछ किसान एेसे भी हैं जो पराली को जलाने के बजाय इसे खाद के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ वह फसलों की ज्यादा पैदावार भी ले रहे हैं।
काठगढ़ [सतीश शर्मा]। किसान अगर सोच लें कि वे पराली नहीं जलाएंगे तो इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। वातावरण को साफ रखना है तो जरूरी नहीं है कि सुपर एसएमएस या अन्य मशीनों का इस्तेमाल किया जाए। कई और तरीके भी हैं, जिनसे पराली का निपटारा आसानी से किया जा रहा है। ऐसा ही एक अलग तरीका अपना कर पराली से अपनी खेतों की उपज बढ़ा रहे हैं गांव कुहार मंड के किसान त्रिलोचन सिंह।
त्रिलोचन सिंह कहते हैं कि पराली को जलाने का चलन पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है। पहले किसान अपने स्तर पर इसका हल निकाल लिया करते थे। उन्होंने कहा कि इसके लिए लाखों रुपये खर्च मशीनरी खरीदने की जरूरत नहीं है। वे लोहे की तवियों से ही पराली की कटाई कर लेते हैं। पराली टुकड़े-टुकड़े हो जाती है। इसके बाद खेत की जुताई कर पानी छोड़ दिया जाता है। सारी पराली खाद बन जाती है। वे इस तकनीक का प्रयोग पिछले दस वर्षों से कर रहे हैं।
पराली जलाने के बजाय खाद के रूप में इस्तेमाल करने का फायदा यह होता है कि उनकी अगली गेहूं की फसल की ऊपज बढ़ जाती है। खाद व कीटनाशकों का भी इस्तेमाल कम होता है। वह कहते हैं कि तवियों के इस्तेमाल से पराली का चूरा बनाकर जमीन में मिल जाता है।
वे कहते हैं कि इससे पराली के निपटारे में केवल मामूली रुपये ही खर्च होते हैं। कोई भी किसान इससे आसानी से पराली को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना निपटारा कर सकता है। त्रिलोचन सिंह कहते हैं कि किसानों को समझना चाहिए कि पराली को जलाने से पर्यावरण जहरीला होता है। हम उसी हवा को जहरीला बना रहे हैं, जिसमें हमें खुद सांस लेना है।
आय में भी बढ़ोतरी
त्रिलोचन कहते हैं कि सरकार को चाहिए किसानों को इसके प्रति जागरूक करे कि हवा को जहरीला बनाने खुद किसानों के सेहत के लिए ही नुकसानदायक है। यदि इस बात को किसान समझ जाएंगे तो वे पराली को जलाने के बजाय उसका सही इस्तेमाल कर अपनी उपज में बढ़ोतरी कर अपने आय को बढ़ाएंगे। इस तरीके से उनकी आय में भी इजाफा हुआ है। वे कहते हैं कि यह सब तरीके किसानों को पता है। जागरूकता लाकर इस समस्या का हल निकाला जा सकता है।