एक टन पराली जलने से दो क्विंटल होती है राख
संवाद सूत्र, नवांशहर जिले में धान की कटाई का सीजन अगले कुछ दिनों से शुरू होने वाला है। इसी के साथ
संवाद सूत्र, नवांशहर
जिले में धान की कटाई का सीजन अगले कुछ दिनों से शुरू होने वाला है। इसी के साथ पराली प्रबंधन का मामला भी जुड़ा है। सरकार की तरफ से पराली को न जलाने के लिए जागरूकता मुहिम चलाई जा रही है। इसके निपटारे के लिए आम लोगों के सहयोग की दरकार है।
कामरेड सरवन ¨सह ने बताया कि पराली जलाने की समस्या इस समय पंजाब की सबसे पड़ी समस्या है। जो न केवल उत्तर भारत के लोगों की सेहत पर असर डाल रही है, बल्कि इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति भी खत्म हो रही है। इसके लिए किसानों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। सीजन की शुरुआत में ही एनएसएस वालंटियरों को गांव-गांव भेज कर किसानों को यह बताना जरूरी है कि पराली जलाने से उनका व अन्य लोगों का कितना नुकसान हो रहा है। अगर एक टन पराली जलाई जाती है, तो उससे दो क्विंटल राख पैदा होती है, जिसकी सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं जानवरों की सेहत के लिए भी नुकसान देह है। किसानों को मशीनरी के सही इस्तेमाल की भी पूरी जानकारी देनी चाहिए। जिस मशीन के इस्तेमाल से उससे ज्यादा फायदा होता है, यह जानकारी भी किसान के पास पहुंचानी चाहिए।
नंबरदार भजन राम ने बताया कि अपने आसपास के वातावरण को दुरुस्त और संतुलित रखने के बारे में पिछले कुछ अरसे से लोगों में खासी जागरूकता आई है, जाहिर है कि इससे पराली व गेहूं की नाड़ जलाने पर जरूर अंकुश लगेगा। प्रशासन इस सीजन में बायोगैस प्लांट लगाने जा रहा है। किसानों को पराली न जलाने के फायदे गिनाए जा रहे हैं। जैसे पराली को खेत में ही खड़ा कर मिट्टी को और उपजाऊ बनाया जा सकता है। ऐसा करके खेती में खाद के खर्च पर भी बचत होगी। फसलों के अवशेषों को खेत में ही मिलाने और उसका फायदा लेने के तहत कई संस्थानों ने प्रौद्योगिकी तैयार की है। इसके मद्देनजर यह जरूरी हो जाता है कि हम परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों की बजाए नवीनतम प्रोद्योगिकी अपनाएं। खबर है कि सरकार ने खेतीबाड़ी विभाग के अलावा शिक्षा संस्थानों को भी पराली न जलाने के लिए किसानों को जागरूक करने की मुहिम पर लगाया है। पंजाबी यूनिवर्सिटी के अधीन दर्जनों कालेज हैं, इन कालेजों के विद्यार्थियों ने भी किसानों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है।