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शिक्षा क्षेत्र में बदलाव की ओ्र जरूरत

जागरण संवाददाता, नवांशहर बीते सालों में बहुत कुछ बदलाव हुए हैं, जिन्हें युवा पीढ़ी व बुजु

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Dec 2017 08:24 PM (IST)Updated: Thu, 14 Dec 2017 08:24 PM (IST)
शिक्षा क्षेत्र में बदलाव की ओ्र जरूरत
शिक्षा क्षेत्र में बदलाव की ओ्र जरूरत

जागरण संवाददाता, नवांशहर

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बीते सालों में बहुत कुछ बदलाव हुए हैं, जिन्हें युवा पीढ़ी व बुजुर्ग पीढ़ी अपने-अपने नजरिए से देखती है। नई पीढ़ी जहां शिक्षा तंत्र में व्यापक सुधार की मांग कर रहे हैं, वहीं बुजुर्गों का कहना है कि नई पीढ़ी संस्कारों से दूर होती जा रही है। इसके लिए दोनों पीढि़यों को इस दूरी को कम करना चाहिए।

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आज हालात बदल गए, इंसान की कद्र हो गई कम

रिटायर्ड प्रिंसिपल हरबंस तनेजा का कहना है कि बीते दौर में लोग सुख दुख को साझा मानते थे। एक दूजे के सुख दुख में शरीक होते थे, जिससे सुख व दुख का समय आसानी से कट जाता था। मगर आज हालात बदल गए हैं। लोग भौतिकवादी हो गए हैं। इंसान की कद्र कम हो गई है। आज लोग मतलबी सा हो गए हैं, हरेक बात में अपने मतलब को ही देखते हैं। पूर्व समय में लोग मेहनती थे, स्मार्ट वर्क जरूरी है, मगर मेहनत भी जरूरी है। मगर आज की युवा पीढ़ी मेहनत करके राजी नहीं है। हालात यह है कि कई निजी कंपनियों व आस पास कई पद खाली पड़े हैं, वेतन भी बेहतर है। मगर युवा काम करने को तैयार नहीं हैं। बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर उसी को लेकर बड़ी-बड़ी मूवमेंट खड़ी कर देते हैं। निजीकरण के हक में नहीं बोल रहा, मगर युवा वर्ग को समय की नजाकत देखते हुए जब तक निजी कंपनियों में काम मिले करना चाहिए व सरकारी नौकरियों के लिए मुकाबले की परीक्षाओं की तैयारी करनी चाहिए।

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मानवता की पाठ पढ़ाने के लिए धर्म की शिक्षा दें

कारी जिया अहमद का कहना है कि युवा वर्ग धर्म की तहजीब भूलते जा रहा है। चाहे वह किसी भी धर्म से संबंध रखता हो, इसलिए हमें जहां अपने बच्चों को आज के जमाने की शिक्षा देनी जरूरी है वहीं पर बच्चों को धार्मिक शिक्षा जरूर देना चाहिए, ताकि उन्हें पचा चल सके कि बड़े बुजुर्ग, पीर पैगंबर व गुरु साहिबान मानवता के प्रति जो प्यार व स्नेह का संदेश देकर दे गए हैं। इससे बच्चों के मनों में जहां धर्म के प्रति आदर व सत्कार बढ़ेगा वहीं उनमें मानवता के प्रति आदर व सत्कार बढ़ेगा। आज जो कुछ हो रहा है उससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम हमारे बच्चों को धर्म की शिक्षा प्रदान करने में कही न कहीं चूक रहे हैं। पश्चिमी रंगत में रंगते जा रहे हैं। हम अभी न चेते तो देर हो जाएगी, इसलिए हमें समय रहते अपने बच्चों को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए घर्म की शिक्षा देनी चाहिए।

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युवाओं को अपनी सोच बदलनी होगी

युवा मनीश लड़ोईया का कहना है कि समाज में रिश्ते तेजी से बदल रहे हैं। इसलिए युवा वर्ग को अपनी सोच को बदलना चाहिए। उनका कहना है कि समाज में कुरीतियां तेजी से फैल रही हैं और अपनी जड़ें मजबूत कर रही हैं। युवा वर्ग को सामाजिक कुरीतियों से बचते हुए लोगों को भी इनके प्रति सचेत करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, नशा व वहम भ्रम बढ़ते जा रहे हैं, इसलिए युवा वर्ग को इनके प्रति न केवल खुद सचेत होना चाहिए, बल्कि खुद एक उदाहरण पेश करना चाहिए। भले ही कई कानून बने हैं, मगर उन्हें उचित तरीके से लागू नहीं किया जा रहा। जैसे बीते समय में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ समाज में चेतना लाने के लिए एक लहर चलाई गई थी, वैसी ही लहर अब चलाने की जरूरत है, ताकि समाज से इन बुराइयों को जड़ से ही मिटाया जा सके।

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बुद्धिजीवियों व व सरकार को आना होगा आगे

व्यवसायी प्रदीप शारदा का कहना है कि शिक्षा तंत्र में सुधार की व्यापक जरूरत है। आज हालात यह है कि जिला मुख्यालत में कोई भी स्तर का सरकारी कॉलेज नहीं है। यही नहीं शिक्षा तंत्र में सुधार के लिए सरकार व बुद्धीजीवियों को आगे आना चाहिए व हमारी शिक्षा नीति पर एक बार मंथन करना चाहिए। हमारी शिक्षा नीति वही है जो हमें गुलाम बनाने के लिए अंग्रेज सरकार की तरफ से बनाई गई थी। सीलेबस में भी भले ही बदलाव किया गया है, मगर नीति वही होने की वजह से सीलेबस भी कारगर साबित नहीं हो पा रहा। युवा वर्ग अपनी ¨जदगी के बेहतरीन साल पढ़ाई को देता है, मगर जब वह पढ़ाई खत्म करते स्कूल या कॉलेज से बाहर निकलता है तो उसे पता चलता है कि जो पढ़ाई उसे स्कूल व कॉलेज में दी गई थी वह पढ़ाई बाहरी दुनिया में कमाई करने में रोजगार चलाने में सही नहीं है। बस जोड़, घटाव व गुना के अलावा वस्तु का नाम लिखने के लिए अक्षर ज्ञान ही काम आता है, जिन्हें बच्चा स्कूल जाने के पहले पांच सालों में अच्छे से सीख लेता है। इसलिए सरकार व बुद्धीजीवी वर्ग को शिक्षा नीति में सुधार लाना चाहिए।


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