जलाएं नहीं, मशीन से काटकर पशुओं के चारे के लिए रखें पराली
पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरुक करने के लिए गांव पनियाली में पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण को बचाएंगे अभियान के तहत दैनिक जागरण ने बैठक करवाई।
संवाद सहयोगी, काठगढ़ : पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरुक करने के लिए गांव पनियाली में पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण को बचाएंगे अभियान के तहत दैनिक जागरण ने बैठक करवाई। चौपाल में गांव के किसानों नें अन्य किसानों को जागरूक किया। पराली जलाने पर्यावरण प्रदूषित होता है इसलिए इस समस्या पर काबू पाना बहुत जरूरी है। हर वर्ष सर्दियां शुरू होते ही यह समस्या भी शुरू हो जाती है और पराली जलाने से आसपास के राज्यों में भी प्रदूषण फैलता है। इससे लोगों को गंभीर बीमारियों का खतरा बना रहता है। हर बार पराली जलाने का विरोध किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद लोग मानते नहीं जो चिंता का विषय है। इस अवसर पर पाखर सिंह पनियाली, बलवीर सिंह, महिदर सिंह, करनैल सिंह, सुरजीत ढबाली आदि उपस्थित थे।
सभी का काम है वातावरण की संभाल करना : गुरविंदर
किसान नेता गुरविदर सिंह मल्ली ने बताया कि वातावरण की संभाल करना हम सबका फर्ज है। अगर हम अपना वातावरण शुद्ध रखना चाहते हैं तो हमें पराली को नहीं जलाना चाहिए। इसका धुआं हमारी सांस लेने वाली आक्सीजन को दूषित करता है। सरकार को किसानों के लिए पराली के उचित ढंग से निपटारा करने के लिए आधुनिक मशीनरी की व्यवस्था करनी चाहिए।
पराली जलाने से मर जाते हैं कीट : भाटिया
किसान सुरजीत भाटिया ने बताया कि पराली को किसान जलाएं नहीं बल्कि उसे मशीन द्वारा काटकर पशुओं के लिए चारा बनाकर रख लें। उसमें हरी खास डालकर उसे पूरा सीजन खिलाते रहें। इसे पशु भी खुश होकर खाते हैं। पराली जलाने से खेती के मित्र कीटों की मौत हो जाती है। इससे धरती उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है।
सरकार बोनस के रूप में दे राशि : बलविंदर
किसान बलविदर सिंह कमालपुर का कहना है कि पराली को हम नहीं जलाएंगे। सरकार इसके लिए किसान को कुछ न कुछ बोनस के रूप में जरूर राशि दे। ताकि जमीन को खाली करने का खर्च हम झेल सकें। सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। सब कुछ किसान के पाले में डाल देने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।
पराली जलाना किसानों की मजबूरी :सेवा सिंह
किसान सेवा सिंह ने बताया कि धान को अगर हम मजदूरों से कटवाते हैं तो सात हजार रुपये खेत लेते हैं। अगर हम कंबाइन से कटवाते हैं तो 1500 रुपये लेते हैं। हमें मशीन से कटवाना लाभदायक है, लेकिन मशीन पराली को खेत में ही छोड़ देती है। पराली जलाना किसान की मजबूरी बनती जा रही है। किसान जानबूझ कर पराली में आग नहीं लगाते हैं।