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भारतीय संस्कृति के साथ पर्यावरण को भी रखें सुरक्षित

बीते दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में स्वयंसेवकों से एकजुट होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने का आह्वान किया है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 02:48 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 02:48 PM (IST)
भारतीय संस्कृति के साथ पर्यावरण को भी रखें सुरक्षित
भारतीय संस्कृति के साथ पर्यावरण को भी रखें सुरक्षित

जयदेव गोगा, नवांशहर: बीते दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में स्वयंसेवकों से एकजुट होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने का आह्वान किया है। इनके मुताबिक प्रत्येक स्वयं सेवक को इस महायज्ञ में अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। जिले के कुछ प्रकृति प्रेमी स्वयंसेवकों ने जल, जंगल, जमीन बचाने के संदर्भ में अपने विभिन्न विचार व्यक्त किए हैं। स्वयंसेवक डा. अश्विनी धीर का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण हर नागरिक के लिए प्राथमिकता का विषय बन गया है। इसके लिए न सिर्फ संघ के स्वयंसेवकों को एकजुट होकर काम करना है, बल्कि स्वयं सेवकों के अतिरिक्त हमें सभी वर्गों को साथ लेकर जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए आगे आना होगा। धरती के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ का नतीजा हम सबको दिख रहा है। उसका खामियाजा हम भगत रहे हैं। जहां कुछ साल पहले घने जंगल हुआ करते थे, वहां आज कंकरीट के बड़े-बड़े भवन खड़े हो चुके हैं और जहां कभी पानी से भरे तालाब हुआ करते थे, आज उनका वजूद मिट गया है। अब बिना समय गंवाए, पर्यावरण के हर क्षेत्र को हमने असंतुलित होने से बचाना है।

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स्वयंसेवक महेश कुमार हैप्पी ने कहा कि हमारे लिए जंगल, झील, पोखर, तालाब व जीव जंतु सहित सभी तत्व धरती का गहना हैं। स्वार्थ के लिए प्रकृति का खूब दोहन किया जा रहा है। बदले में हम उसे क्या दे रहे हैं, इस पर विचार करने की जरूरत है। जल जंगल और जमीन हमारे हैं और हम भी उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। आज अगर उनके वजूद का संकट खड़ा हो गया है, तो इसे कौन दूर करेगा। इसका दुष्परिणाम समाज के सभी वर्गों पर बराबर पड़ रहा है। लिहाजा हम सबको ही आगे आना होगा। आज पर्यावरण संरक्षण हम सबके लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। एडवोकेट प्रदीप धीर का कहना है कि खत्म होती हरियाली और बढ़ते प्रदूषण के बीच हमारे सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है। पहली चुनौती के रूप में प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच बनने की मुश्किल, तो दूसरी उनके टिकाऊ प्रबंधन की है। हमें पर्यावरण और विकास के बीच भी तालमेल बिठना होगा। दोनों के बिना जीवन संभव नहीं है। एक को खोने से जिदगी जीना मुहाल है, तो दूसरे को भुला देना मूर्खता है। बावजूद इसके, पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी पक्षों से इसको जो नुकसान हो रहा है, वह हमारी सभ्यता के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। सुरेश कुमार ने कहा कि प्रदूषण के खिलाफ हर तरफ संघर्ष हो रहे हैं। वास्तविकता यह है कि देश में अभी भी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने जीवन निर्वाह के लिए जल, जंगल और जमीन पर निर्भर है। आम लोग इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हैं, क्योंकि यह उनके जीवन को प्रभावित करता है। हमारी संस्कृति में जल, जंगल और जमीन की पूजा की जाती है। हमने भारतीय संस्कृति और परंपरा की सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित बनाए रखना है।


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