आरसीईपी के खिलाफ केंद्र पर फूटा किसानों का गुस्सा
किसान संघर्ष कमेटी के आह्वान पर कुल हिद किसान सभा पंजाब जम्हूरियत किसान सभा व किरती किसान यूनियन की ओर से रीजनल कंप्रेहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) के खिलाफ रोष प्रदर्शन किया गया।
जागरण संवाददाता,नवांशहर : किसान संघर्ष कमेटी के आह्वान पर कुल हिद किसान सभा पंजाब, जम्हूरियत किसान सभा व किरती किसान यूनियन की ओर से रीजनल कंप्रेहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) के खिलाफ रोष प्रदर्शन किया गया। इस दौरान केंद्र सरकार का पुतला भी फूंका गया। जम्हूरियत किसान सभा के प्रधान राणा उपिदर सिंह पिदु ने कहा कि समझौते के साथ छोटे तथा सीमांत किसानों सहित दूध उत्पादकता का व्यापार तबाह हो जाएगा। उदारीकरण तथा निजिकरण की नीतियों के तहत विश्व व्यापार संस्था के दबाव में मोदी सरकार ने यह समझौता किया है, जिसका पूरे देश में विरोध हो रहा है। उन्होंने कहा, मुक्त व्यापार के साथ दूध से बने प्रोडक्ट पर आयात टैक्स हटाना पड़ेगा जिसका असर सब्सिडी पर पड़ेगा। खेती का धंधा पहले ही घाटे पर है। किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं और सरकार से बार-बार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कुल हिद किसान सभा पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष कामरेड भूपिद्र सांबर, जनरल सचिव बलदेव सिंह की ओर से किसान संघर्ष कमेटी को सावधान करते हुए कहा गया कि यह समझौता देश की आर्थिकता को तहस-नहस कर देगा । केंद्र सरकार को या समझौता वापस लेना चाहिए । देश के 250 किसान संगठन पूरे देश में केंद्र के इस समझौते का विरोध कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि इस समझौते को लागू करने से देश को 60 हजार करोड़ के राजस्व का नुकसान होगा। इस मौके पर उपिदर सिंह पिदू इकबाल सिंह ,सतनाम चाहल,कामरेड स्वतंत्र कुमार, जोगिदर सिंह जोगी ,मुकंद लाल, गुरमेल चंद, जसपाल सिंह आदि मौजूद रहे।
मुक्त व्यापार समझौता है आरसीईपी
आरसीईपी कई देशों के बीच होने वाला एक मुक्त व्यापार समझौता है। इसमें आसियान और एशिया के देश शामिल हैं। इसका उद्देश्य एशिया-प्रशात की विकासशील देशों की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को एक दूसरे के विकास में सहायक बनाना है।
लागू होने पर प्रभावित होगी किसानों की आय
किसान संगठनों का कहना है कि इस मुक्त व्यापार समझौते में डेयरी उत्पाद को शामिल करने के प्रस्ताव हैं। अगर यह लागू हो गया तो विदेशों से भारत में दूध का आयात किया जाएगा। इससे दूध उत्पादन करने वाले भारतीय किसानों के आमदनी प्रभावित हो जाएगी। देश में दूध के दाम में भी गिरावट देखने को मिल सकती है। क्योंकि इस समझौते में शामिल न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के किसानों के पास दूध का उत्पादन खपत से बहुत ज्यादा है। वे जैसे ही अपने डेयरी उत्पाद को भारतीय बाजार में प्रस्तुत करेंगे वैसे ही देशी दूध उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी।