आंतरिक अंधकार को दूर करने का संदेश देती है दीपावली : साध्वी उत्तमा भारती
साध्वी उत्तमा भारती ने बताया कि कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी पर भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था।
जेएनएन, नवांशहर : साध्वी उत्तमा भारती ने बताया कि कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी पर भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था। इसलिए इसदिन को नरक चर्तुदशी भी कहते हैं। साध्वी उत्तमा भारती ने उक्त प्रवचन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान नवांशहर द्वारा गोमती नाथ मंदिर में दीपावली पर्व पर आयोजित संत्संग के दौरान कहे।
उन्होंने बताया कि संपूर्ण भारत में दीपावली का पर्व बेहद हर्षोल्लास से मनाता है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की द्वतीया तक यानी धनतेरस से भाई दूज तक का यह मंगलमय सफर स्वयं में पांच पर्व में समाया हुआ है। आज हम सब भी नरकासुर की तरह मोह, लोभ, काम-वासनाओं के अधीन तृष्णावंत जीवन जी रहे हैं, लेकिन जब हमारे जीवन में श्री कृष्ण जैसे पूर्ण सतगुरू आते हैं तो वह हमारे आसुर मन का अंत करते हैं।
साध्वी जी ने बताया कि अमावस्या की अंधेरी रात को दीवाली पर्व मनाया जाता है। दीपावली की बात करें तो इस पर्व पर जगमगाती दीपमालाएं एक ही संदेश देती हैं कि अपने आंतरिक तमस को दूर करो। टिमटिमाते दिये हमसे कहते हैं कि अंतर्मन में चाहे कैसी भी घोर अमावस्या क्यों न हो, प्रभु ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित कर अपने मन को प्रकाशित करना चाहिए। अपनी सारी कुत्सित और तामसिक प्रवृतियों को इस अलौकिक प्रकाश में विलीन कर डालो। आज तक हमने बाहरी जगत में अनेक बार दीवाली मनाई है। ऐसी दीवाली जो केवल प्रदूषण व हादसों का ही पयरय थी। पर जरा सोचिए क्या हमारी विराट भारतीय संस्कृति दीपावली के इतने बौने पक्ष तक सीमित हो सकती है, नहीं बिल्कुल नहीं। दीवाली का पर्व तो हमें अपने वास्तविक स्त्रोत परमात्मा से मिलन की यात्रा आरंभ करने का संदेश देता है। भीतर के दिव्य अनुभवों को आत्मसात करने की प्रेरणा देता है। तो आइए इस दीपावली पूर्ण गुरू से ब्रह्मज्ञान की दिक्षा प्राप्त करें। दिव्य ²ष्टि जागृत कर अपने अंदर ही अलौकिक आतिशबाजी का आनंद लें। यही होगी अंतजर्गत की वास्तविक शुरू दीपावली। इसी दिन समुद्र मंथन से श्री लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी। इसलिए विशेष तौर पर इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, ताकि हर घर में लक्ष्मी जी का वास हो। हमारे पूर्वजों के अनुसार केवल लक्ष्मी जीवन में मंगल नहीं ला सकती। इसलिए उनके साथ श्री गणेश और श्री सरस्वती जी की पूजा का भी प्रावधान रखा गया। श्री गणेश विवेक के देवता हैं। उनकी पुजा कर हम प्रार्थना करते हैं वे हमारी बुद्धि को प्रकाशित कर धन को सद्कार्यो में लगाने के लिए प्रेरित करें। वहीं हंसवाहिनी और ज्ञानदायिनी मां सरस्वती के पूजन द्वारा हम अपने मन को शुभ्र व पुनीत करने का संकल्प लेते हैं।