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सुनने के साथ-साथ मनन करना भी आवश्यक

संवाद सूत्र, नवांशहर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गोमतीनाथ मंदिर राहों रोड में सत्संग का आ

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 04:23 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 04:23 PM (IST)
सुनने के साथ-साथ मनन करना भी आवश्यक
सुनने के साथ-साथ मनन करना भी आवश्यक

संवाद सूत्र, नवांशहर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गोमतीनाथ मंदिर राहों रोड में सत्संग का आयोजन किया। भक्तों को संबोधित करते हुए साध्वी मोनिका भारती ने कहा कि आज अनेक स्थानों पर नित्यप्रति सत्संग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारी संख्या में श्रोतागण वहां पहुंचकर विचारों को सुनते भी है। परंतु फिर भी समाज में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता। इसका कारण यही है कि आज मनुष्य केवल इन विचारों को सुनने तक ही सीमित है। न तो इन पर मनन करता है और न ही ईश्वर दर्शन के लिए आगे कदम बढ़ाता है। तभी इन विचारों से लाभ नहीं उठा पाता, क्योंकि ईश्वर-दर्शन के लिए प्रेरित करना ही महापुरुषों के सत्संग-प्रवचनों का मुख्य उद्देश्य होता है। इसलिए मात्र सुनना ही पर्याप्त नहीं है। इतिहास साक्षी है कि जब-जब मनुष्य केवल सुनने तक ही रहा तो उसके जीवन में अनेक दुर्घटनाएं घटी एवं वह अपने जीवन-लक्ष्य को पूर्ण नहीं कर पाया। जिस प्रकार नींव की पहली ईंट यदि गलत स्थान पर रख दी जाए तो नींव ही नहीं इमारत ही गिर जाएगी। इसी प्रकार यदि आरंभ में ही गलती की, तो आगे चलकर भी गलतियां ही होंगी। इसलिए संतों ने कहा है कि केवल सुनकर आचरण करना घातक सिद्ध हो सकता है। सुनने के साथ-साथ मनन करना भी आवश्यक है। तभी हम घटना को समझ पाते है।

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जैसे वर्षा का जल पीने को करवाता प्रतीक्षा वैसे ही विचार

जब हम किसी भी विचार को श्रवण करते हैं तो वह हमारे कानों के माध्यम से भीतर पहुंचता है। हमारे स्वयं के मत, मान्यताओं, विकारों के कारण वह मलिन हो जाता है। जैसे वर्षा का जल आरंभ में तो शुद्ध होता है परन्तु वातावरण के धुल कणों से मिलकर वह मलिन हो जाता है। यदि हमें उसे पीना हो, तो प्रतीक्षा करनी होगी कि धुल कण नीचे तल पर बैठ जाएं। वैसे ही यदि हमें ग्रहण कि ए गए विचारों के शुद्ध भावों को समझना है, तो ठहर कर मनन करना होगा।

दुर्योधन के साथ द्रौपदी को भी हुआ पछतावा

साध्वी ने कहा, जब दुर्योधन इन्द्रप्रस्थ महल में आया था, तब उसे किसी दासी ने कहा, आप इधर से जाएं। दुर्योधन ने सुना पर बात पर मनन नहीं किया। इच्छानुसार दूसरे रास्ते पर चल पड़ा। यह विचार नहीं किया कि यह दासी जो कह रही है वह सत्य भी हो सकता है। इस अछ्वुत महल में उसे जो भूमि दिखाई पड़ रही है, वह उसका दृष्टिभ्रम भी तो हो सकता है, वहां जल भी तो हो सकता है और जहां जल दिखाई पड़ रहा है वहां भूमि भी तो हो सकती है। यह सब मनन न करने के कारण वह वहां पर गिर गया। अब द्रौपदी भी दुर्योधन के गिरने की आवाज सुनकर हंस पड़ी। द्रौपदी के चेहरे पर हंसी देख दुर्योधन ने इसे अपना अपमान समझ लिया। अत: दोनों पात्रों के मनन के अभाव ने विध्वंसक युद्ध की नींव डाल दी। इसलिए हमें चाहिए कि हम सुनकर, समझे, विचार करें, फिर देखे और फिर मानें।

मन रूपी तीर से परमात्मा रूपी लक्ष्य के लिए विचारों को अपनाना जरूरी

साध्वी जी ने कहा कि यदि हम मनरूपी तीर से परमात्मा रूपी लक्ष्य को भेदना चाहते है तो सर्वप्रथम सत्संग विचारों को सुनकर, उन पर मनन अवश्य करें। फिर उसके बाद किसी संत-महापुरुषों द्वारा परमात्मा का अपने भीतर ही साक्षात्कार करें। इसलिए आइए, हम सभ मिलकर कामना करें कि हमारे जीवन में भी एक ऐसे संत का आगमन हो जो हमें सुनने तक ही नहीं, बल्कि मनन से दर्शन तक व दर्शन से ध्यान तक, ध्यान से समाधि तक ले जाने की साम‌र्थ्य रखता हो। इस अवसर साध्वी प्रीती भारती ने सुमधुर भजनों का गायन भी किया।


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