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निजी स्कूलों के अभिभावकों की आवाज बने दिनेश कुमार

बलाचौर के दिनेश कुमार आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 12:09 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 06:15 AM (IST)
निजी स्कूलों के अभिभावकों की आवाज बने दिनेश कुमार
निजी स्कूलों के अभिभावकों की आवाज बने दिनेश कुमार

जागरण संवाददाता,नवांशहर : बलाचौर के दिनेश कुमार आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। करीब साढ़े पांच साल से वह आरटीआइ कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहे हैं और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों की आवाज बने हैं। उन्होंने वर्ष 2014 में खुद के साथ एक घटना के बाद अपनी आवाज बुलंद करनी शुरू की थी। उसी वर्ष दिनेश ने कंडी ह्यूमन राइट सोसायटी का गठन किया। इसके बाद स्कूलों की जानकारी जुटाई तो पता चला की बलाचौर के स्कूल खुद को सीबीएसई से मान्यता प्राप्त बताते हैं जबकि उनके पास मान्यता ही नहीं। उस समय बलाचौर के स्कूलों में 28 हजार बच्चे पढ़ते थे। स्कूलों की धोखाधड़ी का खुलासा होने पर स्कूलों से बच्चों दूसरे स्कूलों में गए। इसके बाद वर्दी को लेकर व दुकानदारों की सेटिग को तोड़ने के लिए उन्होंने संघर्ष शुरू किया। इसमें सफलता मिली। इसके स्कूलों के खिलाफ शिकायत की तो 15 जून 2015 डीसी ने डीईओ के प्रशासन के अधिकारियों के साथ बैठक बुलाई और स्कूलों में बिल्डिग फंड को बंद कर दिया गया। दिनेश बताया कि 2014 में उन्होंने अपने बेटे का एडमिशन स्कूल में करवाया था। स्कूल द्वारा बताई गई दुकान से वर्दी व पानी की बोतल खरीदी, लेकिन जब बोतल लीक होने पर वापस करने गए तो दुकानदार ने वापस नहीं की। दिनेश ने बताया कि इस बारे में स्कूल के प्रबंधन व चेयरमैन से शिकायत की तो किसी ने ध्यान नहीं दिया। चेयरमैन ने गुस्से में आकर कहा कि आप प्रिसिपल से 100 रुपये लेकर नई बोतल खरीद लो। इससे उन्हें काफी ठेस पहुंची और इसके बाद स्कूलों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। पहले शिक्षा विभाग को शिकायत की तो सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद मामले को कंज्यूमर कोर्ट में ले गए और दुकानदार के खिलाफ जीत हासिल की। इस दौरान के अनुभवों से पता चला कि किस प्रकार स्कूल लोगों को लूट रहे हैं।

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किताब बदलने के लिए लोगों को किया जागरूक

निजी स्कूल हर साल किताबों को बदलते थे। इसके खिलाफ भी दिनेश कुमार ने आवाज उठाई। इसके बाद डीसी के हस्तक्षेप से हर साल किताबों बाहर से खरीदने की छूट मिल गई। इसके अलावा स्कूल तीन महीने की फीस लेते थे। उसे रोकने के लिए डीसी से लेकर विभिन्न अफसरों के सामने मामले को उठाया और समस्या का समाधान करवाया।


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