स्वार्थी दुनिया में कोई भी सच्चा रक्षक नहीं
संवाद सूत्र, नवांशहर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गांव पुन्नू मजारा में शुरू हुए तीन दिवसी
संवाद सूत्र, नवांशहर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गांव पुन्नू मजारा में शुरू हुए तीन दिवसीय कीर्तन दरबार के अंतिम दिवस भाई गुरदेव ¨सह ने प्रवचनों के अमृतरस का रसपान करवाते हुए कहा कि हे प्रभु तुम ही मेरे सच्चे सहाई हो। आज यही प्रार्थना उस हर इंसान के दिल में से निकलती है। जो इस संसार की सत्यता को पहचान जाता है। यह रिश्ते नाते स्वार्थ से भरे पड़े है। जिन नातों से ऊपर उठ कर इंसान मर मिटने को तैयार होता है। वहीं दुख के समय उसे छोड़ जाते है। स्वार्थ से भरी इस दुनिया में कोई भी सच्चा रक्षक नहीं। आज कलयुग में कितना पापाचार हो रहा है। मां-बाप को मौत के घाट उतार देने वाले बच्चों के आप न्यूज पेपर के माध्यम से कई ऐसे मामले पड़ते हैं। अग्नि को साक्षी मान कर पति-पत्नी बंधन में बंधने वाले लोग दहेज न देने पर कैसे उसी स्त्री को उसी अग्नि में जलाकर किसी मां-बाप से उनकी बेटी, किसी भाई से बहन को छीन लेते हैं। इसलिए यदि संसार में सच्चा रिश्ता कोई होता तो क्या पाप होता?
प्रभु का रिश्ता पक्की डोर
आगे कथा करते हुए कहा कि प्रभु का रिश्ता पक्की डोर है जिसके साथ जुड़ने पर इंसान संसार में रहता हुआ उस सच्चे रिश्ते को अपना सकता है। लेकिन एक प्रश्न है कि उस सच्चे रिश्ते को कैसे जोड़ा जाए? महापुरुष अपनी बाणी के माध्यम से इंसान के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि उस ईश्वर से सच्चा संबंध जोड़ने के लिए उसे प्राप्त करना होगा। वह ईश्वर वैसे तो कण-कण व जर्रे-जर्रे में उसी का स्वरूप व्याप्त है। लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए अंतकरण में उतरना होगा। यह तभी संभव हो सकता है यदि जीवन में अपने भीतर उतरने की युक्त प्रदान करने वाला कोई संत हमारे जीवन में आए। संत के बिना ईश्वर को प्राप्त करना असंभव है।
गुरु ही सच्चे साधक का रक्षक
भाई गुरदेव सिंह ने कहा, जैसे अंधकार में कोई भी व्यक्ति अपनी सूरत को दर्पण में नहीं देख सकता। ठीक वैसे ही व्यक्ति परम प्रकाश का अनुभव किए बिना आत्म साक्षात्कार नहीं हो सकता। गुरु ही सच्चे साधक का रक्षक होता है। अंत्रमुखी करके साधक को संसार के इस भवसागर से पार करने में सक्षम होता है। इसलिए जीवन के परम लक्ष्य को पाने के लिए जरूरत है पूर्ण संत की। इस अवसर पर भाई हरिचरण ¨सह, भाई हरि ¨सह, भाई रविंद्र ¨सह ने गुरबाणी शब्दों का गायन भी किया गया।