बंद होने की कगार पर पहुंची सहकारी सभा आज 55 लाख सालाना मुनाफे में
बंगा की सहकारी सभा जो वर्ष 2000 में बंद होने के कगार पर खड़ी थी। सभा के पास अपना खर्च चलाने के लिए फंड तक नहीं थी।
चमन लाल, बंगा : बंगा की सहकारी सभा जो वर्ष 2000 में बंद होने के कगार पर खड़ी थी। सभा के पास अपना खर्च चलाने के लिए फंड तक नहीं थी। लेकिन सहकारी सभा ने अपनी रणनीति बदली और काम के तरीके को बदला। इसका नतीजा यह निकला है कि यह सभा राज्य की मॉडल बन कर उभरी है। मेहनती स्टाफ और सभा के निर्देशकों की सख्त मेहनत ने सभा को नई दिशा दी है। सभा आर्थिक मंदहाली में से निकलकर वित्तीय मजबूती में आई सभा को देखने के लिए पंजाब के सहकारिता मंत्री सुखजिदर सिंह रंधावा विशेष तौर पर आ चुके हैं। सभा सुबह 6 बजे से बिना किसी छुट्टी के कार्य चलते देखकर दंग रह गए थे। सभा के मैनेजर इकबाल सिंह ने बताया की यह सभा 1952 में अस्तित्व में आई थी। सभा की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे खराब होने के कारण यह सभा बंद होने के कंगार पर पहुंच चुकी थी। जिसका मेंबरों में रोष और चिता थी। 2001 में सभा के सभी सदस्यों ने इसको दोबारा आगे ले जाने की ठान ली और किसानों के साथ जुड़ी खाद की सप्लाई केवल एक रुपये के मुनाफे पर देने को यकीनी बना दिया। सभा में मेंबरों के विश्वास को बहाल कर दिया। यह सभा रोजाना खाने-पीने वाली सभी वस्तुएं, खेतीबाड़ी के साथ संबंधित वस्तुएं, कॉस्टमेटिक बेचने का कार्य करती है। इकबाल सिंह काहमा ने बताया कि सभा को इस मुकाम पर लाने के लिए कमलजीत सिंह संघा एमडी मार्कफेड का योगदान है। उन्होंने बलजिदर सिंह एफएसओ के साथ मिलकर कैटल फीड के नोडल प्वाइंट ने बनवाया होता तो इसकी हालत अच्छी न होती। बलजिदर सिंह ने सभा को सोहना ब्रांड और खेतीबाड़ी दवाइयों की बिक्री केंद्र बनवाया था। सभा को इस लक्ष्य पर ले जाने का सेहरा सभा के प्रधान भूपिदर सिंह, वाईस प्रधान जसवंत सिंह पाठलावा, स्टाफ मेंबर बलविदर सिंह, परमजीत सिंह, बावा सिंह को देते हुए कहा कि सहकारी सभा सालाना कारोबार 41 करोड़ रुपए तक ले जाना सभा की बड़ी प्राप्ति है।
सभा वर्ष 2006-07 में पहली बार छह हजार मुनाफे में आई
घाटे में चल रही सहकारी सभा पहली बार 2006-07 में 6 हजार रुपये के मनाफे में आई थी। 2007-08 में यह मुनाफा 33 गुना बढ़ कर दो लाख में चला गया। ऐसे इसी तरह आज यह मुनाफा 55 लाख हो गया है।