शिक्षा नीति में बदलाव समय की जरूरत
शिक्षा नीति में बदलाव समय की जरूरत
जयदेव गोगा, नवांशहर : आखिरकार 34 साल के लंबे अंतराल के बाद देश की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की नई नीति ने अपने बजूद का परचम लहरा ही दिया। इस नई नीति को अब नए सिरे से 21वीं सदी की जरूरत के हिसाब से गढ़ा गया है। जिले में मत भिन्नता के दबे स्वरों के बावजूद इस नई शिक्षा नीति की विशेषताओं को ही बुद्धिजीवियों ने बताया है।
नवांशहर में जिला अधिकारी के पद पर रहे दिलबाग सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव आज के समय की जरूरत है। शिक्षा हमारे देश के निर्माण और उत्थान का प्रभारी माध्यम है। किसी भी राजनीतिक दल को शिक्षा जैसे विषय को राजनैतिक चश्मे के द्वारा नहीं देखना चाहिए। सभी को यह कोशिश करनी चाहिए कि इसके मसौदे को जल्द से जल्द मंजूरी मिले। इसमें अपने समय में कायदे कानूनों में बंधी शिक्षा प्रणाली को बेहद लचीला बनाया गया है और गुणवत्ता के नए मानक तय किए गए हैं। पाठ्यक्रम से लेकर पढ़ाई के साल तक को लचीला बनाया गया है। सबसे बड़ी बात है कि डीजीपी का छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।
दोबारा पढ़ाई करने वाले छात्रों को मिलेगी सुविधा
सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल हियाला के पंजाबी अध्यापक केवल राम ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत छात्रों द्वारा पढ़ाई को कभी भी छोड़ने और दोबारा शुरू करने की छूट दी गई है। जोकि प्रशंसनीय है। एक साल बाद या दो साल बाद गैप के बाद भी फिर आगे की पढ़ाई जारी रखने की सुविधा दी जाएगी। घरेलू मजबूरियों वाले विद्यार्थियों की पढ़ाई को आसान कर दिया गया है। अब डिग्री कोर्स तीन साल का नहीं होगा, बल्कि हर साल की पढ़ाई का अलग से प्रमाण पत्र दिया जाएगा और उसकी अपनी एक अलग अहमियत होगी। बाद में भी कभी विद्यार्थी अगर चाहें तो अपनी सुविधा के हिसाब से पढ़ाई को अपना समय दे सकते हैं।
शिक्षा से जुड़ सकेंगे पढ़ाई छोड़ चुके छात्र
मास्टर जगदीश राज ने बताया कि यह तारीफ के काबिल है कि नई नीति ने स्कूली शिक्षा के ढांचे में व्यापक तब्दीली की गई है। प्राइमरी कक्षा तक के बच्चों को अपनी मातृ भाषा में ही शिक्षा दी जाएगी। पाठ्यक्रम में भी बड़े बदलाव की बात कही गई है। फिलहाल इसे लेकर एनसीईआरटी काम कर रहा है। उच्च शिक्षा में बिखरे ढांचे को एक नियामक दायरे में लाया जाएगा। स्कूलों से बाहर हो चुके करीब दो करोड़ बच्चों को फिर से स्कूलों से जोड़ा जाएगा, जिनमें दसवीं और 12वीं के बच्चे भी शामिल हैं।
संसद में होनी चाहिए शिक्षा नीति पर चर्चा
प्रिसिपल अशोक कुमार ने कहा कि नई शिक्षा नीति को अमल में लाने से पहले इस पर संसद में बहस जरूर होनी चाहिए। शिक्षा हमारे संविधान की समवर्ती सूची में है। केंद्र सरकार को राज्यों के आब्जेंक्शन और आपत्तियों को दरकिनार करके अपने फैसले थोपने नहीं चाहिए। देश की महत्वपूर्ण नई शिक्षा नीति तय करते समय संसद की पूरी तरह उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। शिक्षा संबंधी विभिन्न नजरियों पर सर्वसम्मति बनाई जानी चाहिए।