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भइया भूख लगी है, कुछ पैसे दे दो ना..

मंदिरों, मस्जिदों या किसी भी धार्मिक स्थल और बाजारों में भिखारियों का जमाबड़ा लगा रहता है। रोटी को तरसते देश के लाखों गरीब लोग अस्पतालों, बस अड्डों, चौराहों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगते आसानी से दिखे जाते हैं जो सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह साध रहे हैं। कानूनी प्रावधानों के जरिए भिक्षावृत्ति पर रोक की कोशिशें अब तक असफल ही साबित हुई हैं। भिक्षावृत्ति को कानूनन अपराध घोषित करने के बावजूद भिखारियों की तादाद कम नहीं हुई है। इस बारे में दैनिक जागरण संवाददाता ने लोगों से राय जानी। जगदीश जाडला का कहना है कि बहुत से बच्चे मां-बाप से बिछड़कर या अगवा होकर भिखारियों के चंगुल में फंस जाते हैं। फिर उनका अपने परिवार से मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, हर साल 44 हजार बच्चे गायब होते हैं। उनमें से एक चौथाई कभी नहीं मिलते। कुछ बच्चे किसी न किसी वजह से घर से भाग जाते हैं। कुछ को किसी न किसी वजह से उनके परिजन छोड़े देते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Nov 2018 05:15 PM (IST)Updated: Fri, 30 Nov 2018 05:15 PM (IST)
भइया भूख लगी है, कुछ पैसे दे दो ना..
भइया भूख लगी है, कुछ पैसे दे दो ना..

वासदेव परदेसी, नवांशहर : मंदिरों, मस्जिदों या किसी भी धार्मिक स्थल और बाजारों में भिखारियों का जमाबड़ा लगा रहता है। रोटी को तरसते देश के लाखों गरीब लोग अस्पतालों, बस अड्डों, चौराहों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगते आसानी से दिखे जाते हैं जो सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह साध रहे हैं। कानूनी प्रावधानों के जरिए भिक्षावृत्ति पर रोक की कोशिशें अब तक असफल ही साबित हुई हैं। भिक्षावृत्ति को कानूनन अपराध घोषित करने के बावजूद भिखारियों की तादाद कम नहीं हुई है। इस बारे में दैनिक जागरण संवाददाता ने लोगों से राय जानी। जगदीश जाडला का कहना है कि बहुत से बच्चे मां-बाप से बिछड़कर या अगवा होकर भिखारियों के चंगुल में फंस जाते हैं। फिर उनका अपने परिवार से मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, हर साल 44 हजार बच्चे गायब होते हैं। उनमें से एक चौथाई कभी नहीं मिलते। कुछ बच्चे किसी न किसी वजह से घर से भाग जाते हैं। कुछ को किसी न किसी वजह से उनके परिजन छोड़े देते हैं।

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भिक्षावृत्ति रोकने के लिए एनजीओ का सहयोग जरूरी

मक्खन ¨सह ताहरपुर का कहना है कि समाज को सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना होगा। जिससे बाल भिखारियों का पुर्नवासन हो सकेगा। उनकी शिक्षा, सेहत और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी निभानी होगी। जिन बच्चों के हाथों में किताबें होनी चाहिए, उनके हाथों में कटोरा थमा दिया जाता है। लोगों को चाहिए कि भीख देना बंद करें और इन लोगों को काम करने की आदत डालने के लिए प्रेरित करें।

भीख मांगना अपराध है या नहीं

अश्वनी गौतम का कहना है कि अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, चौराहों या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगती महिलाओं और बच्चों को देखते हैं तो सोचने को विवश होते हैं कि क्या भीख मांगना अपराध है या नहीं।

स्वरोजगार का देना चाहिए प्रशिक्षण

डॉ. त¨जदर पाल ¨सह का कहना है कि भिक्षावृत्ति पर एक ऐसे कानून की जरूरत है जो इनके पुनर्वास और सुधार पर जोर डालता हो, न कि इसे गैरकानूनी मानता हो। सरकारों को इस बात की पहल करनी होगी कि मजबूरी के चलते भीख मांगने वालों को स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जाए। जिन लोगों ने इसे पेशा बनाया हुआ है उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी जरूरी है।

बच्चों से भीख मंगवाने पर 5 साल की कैद

जिला बाल सुरक्षा अधिकारी कंचन अरोड़ा का कहना है कि बाल भिक्षावृत्ति से मुक्त करवाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कार्रवाई की जाती है। बच्चों से भीख मंगवाना कानूनी अपराध है। यदि अभिभावक ही अपने बच्चों से भीख मंगवाते हैं तो वह भी सजा के भागीदार होंगे। बच्चों से भीख मंगवाने पर पांच वर्ष तक की कैद व एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है।


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