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ध्यान आनंद पाने का उत्तम मार्ग : प्रदीप रश्मि

प्रदीप रश्मि ने एसएस जैन सभा मलोट में श्रद्धालुओं को का ंहत्व बताया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 03:15 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 05:17 PM (IST)
ध्यान आनंद पाने का उत्तम मार्ग : प्रदीप रश्मि
ध्यान आनंद पाने का उत्तम मार्ग : प्रदीप रश्मि

संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)

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प्रदीप रश्मि ने एसएस जैन सभा मलोट में श्रद्धालुओं को कहा कि सुख चैन को पाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय कर रहें हैं । आनंद पाने का उत्तम मार्ग ध्यान को बताया गया। इसलिए लोग आज ध्यान सीखने की ओर उन्मुख हो रहे हैं । लेकिन ध्यान सीखने जैसी कोई बात नहीं है। हर व्यक्ति हर वक्त ध्यान कर रहा है।

ध्यान क्या है? किसी एक बिदु पर मन का एकाग्र होना ध्यान है। हर जीव का मन कहीं ना कहीं एकाग्र होता है। अत: सबका ध्यान हो ही रहा है। ध्यान दो प्रकार का है- एक शुभ और एक अशुभ ध्यान। जब आपका मन शुभ में एकाग्र होता है तो आपका ध्यान शुभ होता है जब आपका मन अशुभ में एकाग्र होता है तो आपका ध्यान अशुभ ध्यान कहलाता है। जब आपका मन संसार में एकाग्र होता है तो आपका ध्यान संसारी ध्यान कहलाता है। जब आपका मन आत्मा परमात्मा में एकाग्र होता है तो वह धर्म ध्यान कहलाता है। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने चार प्रकार के ध्यान का वर्णन किया है। आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। जो व्यक्ति लगातार चिता में पड़ा रहता है वह आर्त ध्यान का शिकार है। जो क्रोध मान कठोरता के भावों में रहता है वह रौद्र ध्यान में मस्त हैं। जो चिता की बजाय चितन करते हैं सकारात्मक सोचते हैं वह धर्म ध्यान में प्रवृत्त है? और जो मन की हर उठापटक व हर गिले-शिकवे से मुक्त हो जाते हैं वह शुक्ल ध्यान में है । इनमे पहले के दो ध्यान अशुभ ध्यान है? और अंत के दो ध्यान शुभ नाम है। जब हमारा मन कहीं भी एकाग्र होता है तो एक ऊर्जा पैदा होती है । जब वह शुभ में एक एकाग्र होता है तो शुभ ऊर्जा पैदा होती है, जिसके परिणाम स्वरूप शांति, आनंद परम उल्लास व सुख की अनुभूति होती है। अशुभ में एकाग्र होने पर अशुभ ऊर्जा पैदा होती है जिसके परिणाम स्वरूप दुख, बेचैनी, चिता, अवसाद पैदा होते हैं। अब करना क्या है। अपने अशुभ ध्यान को शुभ में परिवर्तित करना है। अपनी हर नकारात्मकता को सकारात्मिकता में बदलना है। यही शुभ ध्यान है । यह सब चितन से संभव होता है। चितन से चित्त को चैतन्य बनाया जाता है । चैतन्य चित शुभ में एकाग्र होता है। जड़ चित्त अशुभ मे एकाग्र होता है। जब वह शुभ में परिवर्तित हो जाता है तो उसके बाद शुद्धता की ओर बढ़ता जाता है।


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