चिता में किया गया भोजन हानिकारक : प्रदीप रश्मि
शरीर की निरोगता के लिए शुद्ध सात्विक आहार जितना आवश््यक है।
संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)
शरीर की निरोगता के लिए शुद्ध सात्विक आहार जितना आवश्यक है उतना ही यह भी आवश्यक है कि वह भोजन किस भाव दशा में किया गया है। अगर क्रोध चिता दुख के भावों में भोजन किया गया है तो भोजन चाहे कितना ही शुद्ध व पौष्टिक हो उसके परिणाम जहरीले ही होंगे और अगर आनंदपूरक प्रसन्न भावों से भोजन किया गया है तो संभावना है कि जहर के परिणाम भी अच्छे हो सकते हैं। आनंदित अवस्था में खाने से पाचक रस ज्यादा छूटता है जिससे खाना सरलता से पचकर सेहतमंद बनाता है। अत: चिता क्रोध व दुख के भावों में भोजन नहीं करना चाहिए। यह विचार पंजाब सिंहनी प्रदीप रश्मि जी ने एसएस जैन सभा के प्रांगण में श्रद्धालुओं से धर्म चर्चा करते हुए कहे।
उन्होंने कहा कि भोजन बनाने में वाली की भाव दशा का असर भी भोजन पर पड़ता है। जिसके हाथ का भोजन करते हैं उसकी मनोस्थिति खाने वाले पर असर डालती है। भोजन बनाते समय मन को खुशी से भर लें। चिता व क्रोध से बनाया भोजन से सेहत व मन पर बुरा असर पड़ता है। भोजन बनाने वाली गृहणी क्रोध चिता से भोजन बना रही है तो वह भोजन अच्छा परिणाम नहीं देता है। स्वास्थ्य के लिए भोजन बनाने वाले की भाव दशा अच्छी होनी चाहिए ।रसोई का वातावरण वायुमंडल शुद्ध होना चाहिए। रसोई में नवकार महामंत्र के धुन चलाकर उसका वातावरण शुद्ध करें। परमात्मा का स्मरण करते हुए प्रसन्न भावों से भोजन बनाएं व परमात्मा का स्मरण करते हुए प्रसन्न भावों से ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए भोजन को परमात्मा के नाम से चार्ज करके भोजन ग्रहण करने से भोजन अमृत बन जाता है।वह भोजन शरीर को निरोगी बनाता है।
इस मौके पर सभा के प्रधान प्रवीण जैन, रमेश जैन, बिहारी लाल, सुभाष, अमन जैन, उमेश नागपाल मखन लाल, जयंत वोथरा, गुणेन्द्र वोथरा, दर्शन नाहटा, विलायती चौधरी, रोशन कुमार जैन, बिल्लू शर्मा व श्याम सुंदर शिदी ने एक भजन गाकर सबको आनंदित किया।