संकट में दूसरों को सहारा देना सबसे बड़ा परोपकार
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब स्वामी दिव्यानंद गिरि ने कहा कि अगर भक्ति सच्ची है तो परमात्मा किस
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब
स्वामी दिव्यानंद गिरि ने कहा कि अगर भक्ति सच्ची है तो परमात्मा किसी न किसी रूप में प्रकट होकर आपका कार्य कर देंगे। सत्संग में जाने के लिए दूरी कभी बाधा नहीं डालती। दिव्यानंद जी ने ये विचार श्री रघुनाथ मंदिर में आयोजित वार्षिक माघ महात्म एवं ज्ञान भक्ति सत्संग कार्यक्रम के दौरान वीरवार को प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहे।
स्वामी जी कहा कि कभी किसी को विपदा या संकट में न डालें। जान-बूझकर किसी को संकट में डालना भी ¨हसा से कम नहीं। संकट में दूसरों को सहारा देना सबसे बड़ा परोपकार है। मुसीबत के समय ही अपने-पराये की परख होती है तथा सच्चे दोस्तों की पहचान होती है। दु:ख जब चरम सीमा पर होता है तो सुख ज्यादा दूर नहीं होता। समझो उस समय सुख आने ही वाला है। स्वामी जी ने कहा कि नीम कड़वी होती है, पर सेवन करने वाले के शरीर में बीमारी नहीं आने देती। चीनी मीठी होती है, मगर अधिक सेवन करने से डायबटिज या शुगर का खतरा बना रहता है। ऐसी ही दुख रहे तो जीवन में अहंकार का रोग नहीं आता। बल्कि जीवन तंदरुस्त और जीवन में आध्यात्मिकता बढ़ती जाती है। मनुष्य धार्मिक बनता जाता है। धन, ऐश्वर्य अधिक आए तो ईश्वर ¨चतन कम हो जाता है। अंहकार रुपी शत्रु चोट करने लगता है। जीवन खराब हो जाता है। दिव्यानंद जी ने कहा कि कभी भी रोग, सांप, आग, शत्रु और पाप को कभी छोटा न आंकें। रोग को प्रारंभ होते ही इलाज नहीं करेंगे तो असाध्य हो सकता है। सांप को छोटा समझकर छोड़ देंगे तो असावधानी में वह काट भी सकता है। आग को थोड़ा समझकर छोड़ देंगे तो वह भीषण रुप धारण करके पूरे नगर को भस्म कर सकती है। पाप चाहे थोड़ा ही हो आदत पड़ने पर बढ़ता जाता है और महा पाप का रुप धारण कर लेता। दुश्मन को भी कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। इसलिए इन पांचों चीजों को प्रारंभ में ही उखाड़कर फेंक देना चाहिए।