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ईश्वर को जाने बिना मनुष्य के लिए वास्तविक सुख की प्राप्ति संभव नहीं

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आश्रम डबवाली मलकोकी में सत्संग करवाया गया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Dec 2021 04:24 PM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 04:24 PM (IST)
ईश्वर को जाने बिना मनुष्य के लिए वास्तविक सुख की प्राप्ति संभव नहीं
ईश्वर को जाने बिना मनुष्य के लिए वास्तविक सुख की प्राप्ति संभव नहीं

संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)

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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आश्रम डबवाली मलकोकी में सत्संग के दौरान संस्थान के संचालक एवं संस्थापक आशुतोष महाराज जी की शिष्य साध्वी किरण भारती ने कहा कि एक इंसान का जीवन प्रभु भक्ति के बिना अधूरा है। उसके जीवन के सब सुख प्रभु को न जानने के कारण व्यर्थ है। इस कारण ही मानव आज धन, ऐश्वर्य, यश, मान, प्रतिष्ठा, पुत्र आदि को प्राप्त करने के पश्चात भी शांत और सुखी नहीं है। वह उस परम शांति के स्त्रोत को भौतिक वस्तुओं में ढूंढ रहा है। जो कि असंभव है।

इस संसार के भीतर जिस भी किसी ने परम शांति के स्वाद का रसास्वादन किया तो उसे अपने भीतर उतरना पड़ा। वह शांति का परम स्त्रोत यानि ईश्वर किसी भौतिक वस्तु अथवा किसी बाहरी स्थान पर नहीं रहता है। वह परम शक्ति तो प्रत्येक मनुष्य के भीतर विद्यमान है। उसको प्राप्त करने, देखने का एक ही सनातन मार्ग है और वह है उस विद्या को जान लेना जिस के द्वारा एक जीवात्मा उस परमात्मा की दिव्य अनुभूति को अपने घट में उस दिव्य चक्षु के द्वारा करती है क्योकि ये चर्म नेत्र उस ईश्वरीय शक्ति को देख पाने में असमर्थ हैं।

भगवान श्री कृष्ण भी समर भूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहते हैं न तू मां शक्यसे द्रश्टुमनेनैव स्वचक्षुषा। दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम। कि तु मेरे वास्तिविक स्वरूप को अपनी इन आंखों के द्वारा नहीं देख सकता है। उसके लिए मैं तुम्हें दिव्य नेत्र को प्रदान करता हूं। जिसके द्वारा तू मेरा वास्तिविक स्वरूप का दर्शन कर पाएगा। और उस के लिए तूझे एक पूर्ण संत की शरण में जाकर उस दिव्य दृष्टि के द्वारा परमात्मा को देखकर अपने जीवन में भक्ति को प्रारम्भ करना होगा। तभी हमारे जीवन का कल्याण संभव है। और जो जीव अपने जीवनकाल में उस भक्ति को करता हुआ जीवन को व्यतीत करता है वह परमात्मा में ही लीन हो जाता है। परमात्मा उसके योगक्षेम का भार स्वयं वहन करता है। जैसा कि भक्तों के साथ हुआ।

भक्त प्रहलाद, ध्रुव, मीराबाई, कबीरदास जी, नामदेव जी, धन्ना जाट आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। अत: अगर हम भी चाहते हैं। कि हमारा जीवन भी खुशहाल शान्त और आनंद से परिपूर्ण हो जाए तो हमें भी परमात्मा की भक्ति को करना चाहिए।


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