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खुद को ईश्वर को सौंपें, होगा कल्याण

स्वामी कमलानंद गिरि जी ने श्रीमद् भगवत गीता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मनुष्य इंद्रियों को विषयों से मोड़ें। जैसे कछुआ अपने अंगों को सिकुड़ लेता है, ऐसे ही जो भक्त इंद्रियों को विषयों से मोड़ लेता है, वह बादशाहों का बादशाह है। जो अपने मन और इंद्रियों का दास हो गया, वह सकल सृष्टि के आधीन हो गया। स्वामी कमलानंद जी ने ये विचार श्री राम भवन में शुरु हुए श्रीमद्

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 04:14 PM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 06:05 PM (IST)
खुद को ईश्वर को सौंपें, होगा कल्याण
खुद को ईश्वर को सौंपें, होगा कल्याण

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब

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स्वामी कमलानंद गिरि ने श्रीमद्भगवत गीता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मनुष्य इंद्रियों को विषयों से मोड़ें। जैसे कछुआ अपने अंगों को सिकुड़ लेता है, ऐसे ही जो भक्त इंद्रियों को विषयों से मोड़ लेता है, वह बादशाहों का बादशाह है। जो अपने मन और इंद्रियों का दास हो गया, वह सकल सृष्टि के आधीन हो गया। स्वामी कमलानंद जी ने ये विचार श्री राम भवन में शुरु हुए श्रीमद् भगवत गीता प्रवचन कार्यक्रम के चौथे दिन श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह के समक्ष प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आत्मा नित्य है। शुद्ध है और प्रबुद्ध है। परमात्मा को सब कुछ बोध है। उसने बिना मांगे शरीर दे दिया तो बिना मांगे सभी जरूरत की वस्तुएं प्रदान भी करेगा। दो महीने का बच्चा मां की गोद में होता है वह कभी नहीं कहता कि मेरे कपड़े गंदे हैं। मेरे कपड़े पुराने हैं। मुझे नए वस्त्र पहना दो। मुझे नहला दो। काजल लगा दो। मेरे कंघी कर दो। मेरा मैला साफ कर दो। बच्चे ने कुछ नहीं कहा पर मां सावधान होकर सब कर रही है, क्यों कर रही है कि बच्चा सोचता है कि जिसकी गोद में आ गए वही मेरी देखभाल स्वयं करेगी।

अगर हम भी अपने आपको परमात्मा की गोद में डाल दें तो हम भले हैं बुरे हैं तेरे हैं और तेरे चरणों में ही पड़े रहेंगे। और तू जान प्रभु इस जीवन में क्या होना है। अपने आप परमात्मा व्यवस्था संभालेंगे बस पूर्ण आस्तिकता की आवश्यकता है। आस्तिक का मतलब ईश्वर पर पूर्ण विश्वास। विश्वास केवल शब्द नहीं है समर्पण है, हर व्यक्ति विश्वास तो करता है लेकिन किसी को दस प्रतिशत, किसी को बीस प्रतिशत तो किसी को पचास प्रतिशत ही विश्वास होता है, लेकिन सौ प्रतिशत विश्वास वाले को भगवान के अंग संग होने का आभास हर समय रहता है। जैसे बच्चे को मां की गोद में रहने का आभास रहता है।

स्वामी जी ने आगे बताया कि भरी सभा में द्रौपदी की रक्षा किसी ने नहीं की तो द्रौपदी को महसूस हुआ कि मैं क्षत्राणी हूं। अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकती हूं। जो साड़ी की अंतिम गांठ रह गई थी। द्रौपदी ने जोर से पकड़ ली और भगवान को पुकारती रही। भगवान नहीं आए। एक हाथ उठा कर पुकारा तो भी भगवान नहीं आए। द्रोपदी ने देखा कि ठाकुर नहीं आए और लाज जाने वाली है तो दोनों हाथ साड़ी की गांठ में से छोड़ कर प्रभु को पुकारा तो प्रभु झटपट वस्त्र बनकर प्रकट हो गए और शरीर में लिपट गए। द्रोपदी, शबरी, मीरा, तुलसी, कबीर जैसा विश्वास हम सब में होना चाहिए। इस मौके बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।


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