धैर्य का दामन कभी न छोड़ें: दिव्यानंद गिरि
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब स्वामी दिव्यानंद गिरि ने श्रद्धालुओं को धैर्य धारण करने की प्रेरणा
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब
स्वामी दिव्यानंद गिरि ने श्रद्धालुओं को धैर्य धारण करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जिस मनुष्य के पास धैर्य है, वह जो भी इच्छा रखता है उसे धैर्यपूर्वक पाने का दम भी रखता है। अर्थात धैर्य में वो शक्ति है जिससे मन की हर इच्छा को पूरा किया जा सकता है। मनुष्य धैर्य का दामन कभी न छोड़े। धैर्य रख कर बड़े से बड़ा कार्य आसानी से किया जा सकता है। दिव्यानंद गिरि ने ये विचार अबोहर रोड स्थित श्री मोहन जगदीश्वर दिव्य आश्रम में शुरु हुए साप्ताहिक प्रवचन कार्यक्रम के प्रथम दिन श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह के समक्ष व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ये सही है कि रुपया-पैस आज समय की जरूरत है। रुपया-पैसा जीवन में मायने रखता है। मगर रुपया-पैसा ही सब कुछ नहीं है। जीवन में सुख व संतोष से बड़ा धन कोई नहीं है। जिस व्यक्ति के पास रुपया-पैसा तो बहुत है, मगर सुख व संतोष नहीं है उससे बड़ा गरीब दुनिया में कोई नहीं है।
दिव्यानंद जी ने कहा कि गलतियां मनुष्य को संपूर्ण बनाने में अहम योगदान देती हैं। गलतियों से सबक लेने वाला इंसान ही संपूर्ण बन पाता है। जिस प्रकार बिना घिसे हीरे पर चमक नहीं आती, उसी प्रकार बिना गलतियां किए मनुष्य संपूर्ण नहीं बन पाता। मनुष्य अगर गलती करता है तो उसे अपनी उस गलती से सबक भी लेना चाहिए। बार-बार गलती दोहराने की बजाए गलतियों से सबक लेकर जीवन पूर्ण बनाएं। स्वामी जी ने मनुष्य को क्रोध न करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जब मनुष्य को क्रोध आए तो क्रोध करते समय उसके बाद के परिणामों के बारे में सोच ले। ऐसा करने से उसका क्रोध धीरे-धीरे शांत हो जाएगा। क्रोध की अग्नि में जलकर व्यक्ति खुद व अन्य को सिर्फ नुकसान ही पहुंचाता है। क्रोध में आकर ऐसा कोई कार्य न करें जिससे बाद में पछताना पड़ जाए। प्रथम दिन के प्रवचन कार्यक्रम दौरान यजमान के तौर पर श्री सनातन धर्म प्रचारक पं. पूरन चंद्र जोशी के परिवार ने पूजन में हिस्सा लिया। इस मौके मंदिर प्रांगण सद्गुरु देव महाराज के जयकारों से गूंज उठा।
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दुख जब चरम पर तो समझो सुख दूर नहीं : विवेकानंद गिरि
स्वामी विवेकानंद गिरि ने प्रवचनों की अमृतवर्षा दौरान कहा कि दु:ख जब चरम सीमा पर होता है तो सुख ज्यादा दूर नहीं होता। समझो उस समय सुख आने ही वाला है। इसलिए दु:खों से न घबराएं। दुख व सुख का चक्र तो जीवन में चलता ही रहता है। आज अगर दुख है तो कल सुख भी आएगा। स्वामी जी ने कहा कि समता के बिना जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। हर्ष में फूलना तथा दुख में रोना जीवन की विषमता है। अपनी ¨नदा सुनकर बुरा लगना और प्रशंसा सुनकर प्रसन्न होना विषमता से भरा जीवन है। समता का आनंद ही कुछ और है। समतावान व्यक्ति ¨नदा और प्रशंसा, बदनामी और प्रतिष्ठा, आलोचना और प्रसिद्दि के क्षणों में भी नहीं घबराते और न ही कभी फूलते हैं। विवेकानंद जी ने श्रद्धालुओं को प्रभु सिमरन करने की प्रेरणा दी।