सौभाग्य से मिलता है सत्संग का मौका : दिव्यानंद गिरि
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि चौरासी लाख योनियों में भटकने क
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब
स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद कहीं जाकर मनुष्य तन मिलता है। उस पर भगवत कथा या सत्संग श्रवण करने का मौका मिलना तो और भी सौभाग्य की बात हो जाती है। कथा में बैठकर मनुष्य को मन को एकाग्रचित बनाना चाहिए। कथा में बैठकर भी अगर मनुष्य का मन इधर-उधर भटकता रहेगा तो सत्य के साथ संग होना मुश्किल है। जो श्रद्धालु कथा अथवा सत्संग में जाकर प्रभु के रंग में रंग जाते हैं उन्हें ही सत्संग का सही अर्थ पता चलता है। दिव्यानंद जी ने ये विचार श्री रघुनाथ मंदिर में आयोजित वार्षिक माघ महात्म एवं ज्ञान भक्ति सत्संग कार्यक्रम के समापन समारोह के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहे व्यक्त किए।
स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य को धार्मिक ग्रंथों को सिर्फ रटने तक ही सीमित रहना चाहिए, बल्कि इन्हें अपने मन के भीतर सच्चे हृदय से उतारना चाहिए। अगर मनुष्य सच्चे मन से धर्म ग्रंथों का अध्ययन करे तो उसे बहुत ज्ञान प्राप्त हो सकता है। दिव्यानंद जी बोले कि प्रभु मिलते तो सभी को हैं, लेकिन जिसके जीवन में सिमरन तथा साधना अधिक है वही ईश्वर को पहचान पाता है। बाकी ईश्वर को सामने होने के बावजूद नहीं पहचान पाते क्योंकि उन्हें पहचानना कठिन है। रावण को प्रभु श्री राम जी के दर्शन कई बार हुए, मगर वह अहंकार के वशीभूत होने के कारण उन्हेंन पहचान सका। जबकि विभीषण ने एक ही बार में दर्शन कर पहचान लिया। भजन और सेवा के अभाव में बड़े-बड़े अहंकारी ईश्वर को नहीं पहचान पाए। इसलिए भगवान को पहचानने के लिए विनम्रता का चश्मा नेत्रों पर चढ़ाना बेहद जरुरी है, तभी उनके दर्शन होंगे। दिव्यानंद जी ने फरमाया कि भगवान बुद्धि के नेत्रों से नहीं बल्कि श्रद्धा और ज्ञान के नेत्रों से नजर आते हैं। ईश्वर अनुभव के लिए वासना के कीचड़ से नेत्रों को साफ करना अनिवार्य है।
इस मौके मंदिर प्रांगण सद्गुरु देव महाराज के जयकारों से गूंज उठा। बड़ी गिनती में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर स्वामी दिव्यानंद जी एवं विवेकानंद जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।