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मन में आत्मविश्वास जगा डर को भगाएं दूर : दिव्यानंद गिरि

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि आज मनुष्य को किसी न किसी प्रकार

By JagranEdited By: Published: Wed, 31 Jan 2018 04:06 PM (IST)Updated: Wed, 31 Jan 2018 04:06 PM (IST)
मन में आत्मविश्वास जगा डर को भगाएं दूर : दिव्यानंद गिरि
मन में आत्मविश्वास जगा डर को भगाएं दूर : दिव्यानंद गिरि

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब

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स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि आज मनुष्य को किसी न किसी प्रकार का डर सताए रहता है। मनुष्य को डर का हंसते हुए डटकर सामना करना चाहिए। मनुष्य खुद में आत्मविश्वास जगाए और डर को दूर भगाए। यही सबसे बढि़या तरीका है। हर काम मनुष्य को कभी न कभी ¨जदगी में पहली बार करना पड़ता है। इसलिए उस काम को करने में न डरें बल्कि उसे करने की कोशिश करें। अगर वह काम आपने पहली बार आसानी से कर लिया तो स्वाभाविक है कि आप दूसरी, तीसरी बार भी उसे आसानी से कर लेंगे। डर खुद ही खत्म हो जाएगा। दिव्यानंद जी ने ये विचार श्री रघुनाथ मंदिर में आयोजित वार्षिक माघ महात्म एवं ज्ञान भक्ति सत्संग कार्यक्रम के दौरान बुधवार को प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहे व्यक्त किए।

स्वामी जी ने कहा कि अगर मनुष्य कोई कठिन कार्य करने की सोचता है तो उसका आत्मविश्वास बढ़ता और प्रबल होता है। व्यक्ति उस काम को करने का तरीका सोचने लगता है और उसमें सफलता प्राप्त कर लेता है। कठिन कार्य न करने और कोशिश भी न करने से डर और प्रबल होता है। इसलिए डर को भगाने के लिए उस काम को कर दीजिए। मनुष्य को कर्मठ बनना चाहिए। कर्म करते रहना चाहिए। काम को टालिए मत। कर्म करने से डर दूर होता है।

मानव जीवन ईश्वर की बंदगी के लिए प्राप्त हुआ है। मगर ¨चता की बात यह है कि आज मानव अपनी ¨जदगी बंदगी में न लगाकर गंदगी में धकेल रहा है। स्वामी दिव्यानंद जी ने कहा कि कांच के जितने टुकड़े दीवार में लगे होते हैं, उतने ही प्रति¨बब नजर आते हैं। जबकि हम मूल में एक ही होते हैं। इसी प्रकार जगत में जितने भी स्थूल, सूक्ष्म जीव-जंतु, मानव एवं प्राकृति से उत्पन्न हुए प्राणि है, सभी में अलग-अलग रुप होने पर भी एक ही मूल रुप से परमपिता परमात्मा की ही ज्योति समाई है। सभी उसी के ही प्रति¨बब हैं। भगवान का नाम सिमरन करने से काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद नष्ट हो जाते हैं। जहां काम होता है, वहां क्रोध है। जहां लोभ होगा वहां मोह भी जरुर होगा। जहां मद है वहां मत्सर जरुर होता है। जैसे दिन और रात का जोड़ा, लाभ और हानि का जोड़ा, संयोग और वियोग का जोड़ा होता है। वैसे ही काम, क्रोध, लोभ व मोह एक साथ रहते हैं। कथा के उपरांत स्वामी दिव्यानंद जी ने मंदिर में लगाए जाने वाले लंगर का शुभारंभ कराने की रस्म भी अदा की।


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