कामरेड प्यारेलाल ने जब कार्बाइन आतंकियों पर तान दी थी
साल 1992 में जब सूबे में आतंकवाद चरम पर था तब जनता दल की सीट से विजय कुमार साथी चुनाव लड़ रहे थे।
जागरण संवाददाता, मोगा : साल 1992 में जब सूबे में आतंकवाद चरम पर था, तब जनता दल की सीट से विजय कुमार साथी चुनाव लड़ रहे थे। विजय कुमार साथी के चुनाव प्रबंधन की कमान मोगा के कामरेड साथी प्यारेलाल के हाथों में थी। तब पूरा चुनाव संगीनों के साए में हुआ था, ऐसे में प्रत्याशी के साथ हर कोई खड़े होने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था, उस दौर में साथी प्यारेलाल ने जो कर दिखाया आज भी मिसाल बना हुआ है। चुनाव दफ्तर बंद कराने पहुंचे आतंकियों से साथी प्यारेलाल अकेले ही कार्बाइन के साथ भिड़ गए थे, साथी प्यारेलाल का ये रौद्र रूप देख आतंकी भी डर गए थे, ये कहते हुए वहां से वापस चले गए कि ये तो कोई पागल है। उस चुनाव में पहली व अंतिम बार विजय कुमार साथी चुनाव जीते थे।
साथी प्यारेलाल का चैंबर रोड पर ठिकाना पूरे शहर में चर्चा का विषय रहता है। यही वो ठिकाना है जहां हर पार्टी का नेता आकर बैठता है चर्चाओं में हिस्सा लेता है। पहले चेंबर रोड पर प्यारेलाल का एक खोखा होता था, लेकिन अब निकट ही निगम की एक दुकान पर किराए पर ली है, लेकिन राजनीति के कई धुरंधर उनके खोखे पर होने वाली चर्चाओं में चाय की चुस्की ले चुके हैं।
साथी प्यारेलाल साल 1992 के चुनाव की याद साझा करते हुए बताते हैं कि तब जनता दल से विजय कुमार साथी की बाघापुराना विधानसभा सीट से टिकट फाइनल होने पर उन्होंने चुनाव दफ्तर मुदकी रोड पर खोला था। दफ्तर खोले दो तीन दिन ही हुए थे कि एक दिन सुबह तीन आतंकी चुनाव दफ्तर पर आ धमके, उस समय साथी प्यारेलाल अकेले ही चुनाव दफ्तर में बैठे समाचार पत्रों पर नजर डाल रहे थे। आतंकियों ने आते ही साथी प्यारेलाल से कहा कि अपना दफ्तर बंद कर दो, अन्यथा उन्हें गोलियों से भून दिया जाएगा। साथी प्यारेलाल ने विनम्रता के साथ आतंकियों से आग्रह किया कि उन्हें दो दिन ही चुनाव दफ्तर खोले हुए हैं, अगर आज ही चुनावी दफ्तर बंद कर दिया तो वे तो चुनाव आज ही हार जाएंगे। लेकिन आतंकियों ने साथी प्यारेलाल की दलील नहीं मानी। प्यारेलाल ने देखा कि आतंकी उनकी भाषा समझने वाले नहीं है तो उन्होंने ऑफिस में रखी कार्बाइन उठाई और आतंकियों की ओर तान दी, साथ ही 40 कारतूसों वाली मैग्जीन लोड करते हुए बोले जिसमें हिम्मत है ऑफिस बंद करके दिखाए। साथी प्यारेलाल का ये रौद्र रूप देख आतंकी ये कहते हुए आगे बढ़ गए ये तो कोई पागल है।
साथी प्यारेलाल की ये बहादुरी बाद में अखबारों की सुर्खियां भी बनीं और तब जनता दल प्रत्याशी उस चुनाव में निर्वाचित भी हुए थे। बाद में साथी विजय कुमार कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कांग्रेस की लहर के समय उन्होंने दो चुनाव लड़े, लेकिन दोनों हार गए। बाद में अपने चुनावी गुरु जगमीत सिंह बराड़ के साथ तृणमूल कांग्रेस में चले गए थे, लेकिन बाद में कोई चुनाव नहीं जीत सके।