राजनीति के धुरंधर जैन व जत्थेदार परिवार डेढ़ दशक बाद आज होंगे एक मंच पर
मोगा लगभग डेढ़ दशक तक जिले की राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे जोगिदर पाल जैन व जत्थेदार तोता सिंह के परिवार एक बार फिर जिले की राजनीति में एक ही मंच पर दिखेंगे। डेढ़ दशक में लगभग 12 साल दोनों परिवारों की अकाली दल में रहते हुए भी राहें जुदा रहीं।
सत्येन ओझा, मोगा
लगभग डेढ़ दशक तक जिले की राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे जोगिदर पाल जैन व जत्थेदार तोता सिंह के परिवार एक बार फिर जिले की राजनीति में एक ही मंच पर दिखेंगे। डेढ़ दशक में लगभग 12 साल दोनों परिवारों की अकाली दल में रहते हुए भी राहें जुदा रहीं। इसका बड़ा कारण था, जैन ने जिले की राजनीति में प्रवेश करने के बाद सभी दलों के राजनीतिक समीकरणों को बिगाड़ दिया था। वह जिस पार्टी में भी रहे, परिणाम उनके पक्ष में रहे। यही वजह थी कि साल 2012 के चुनाव में बादल सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके जत्थेदार तोता सिंह को अपना विधानसभा क्षेत्र भी बदलना पड़ा था। मोगा से पलायन कर उन्होंने धर्मकोट में अपनी नई राजनीतिक पिच सजाई थी। दोनों परिवारों के एक मंच पर आने की औपचारिक घोषणा वीरवार को निवर्तमान मेयर एवं अकाली नेता अक्षित जैन कर सकते हैं।
गौरतलब है कि गांव की पंचायत से निकलकर तीन बार भाजपा की सीट से इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के चेयरमैन रह चुके जोगिदर पाल जैन जब निगम की राजनीति में सक्रिय हुए तो उन्होंने निगम ही नहीं बल्कि विधानसभा की राजनीति के सारे समीकरण अपने पक्ष में कर लिए थे। साल 2012 में वे दिग्गज अकाली नेता जत्थेदार तोता सिंह को पराजित कर कांग्रेस की सीट से पहली बार चुनकर विधानसभा पहुंचे थे, उससे पहले वे नगर कौंसिल के अध्यक्ष थे। विधानसभा में पहुंचने के बाद उन्होंने नगर कौंसिल प्रधान का पद अपनी पत्नी स्वर्णलता जैन को जितवाया। उस समय सूबे में अकाली दल की सत्ता थी, ऐसे में जोगिदर पाल जैन ने नया दांव खेला, उन्होंने कांग्रेस पार्टी व विधानसभा दोनों से ही इस्तीफा दे दिया। फरवरी-2013 के चुनाव उन्होंने आजाद प्रत्याशी के रूप में लड़ा और अकाली दल के प्रत्याशी बरजिदर सिंह बराड़ को हराकर दोबारा विधानसभा में पहुंचे। बाद में वह अकाली दल में शामिल हो गए थे। हालांकि जत्थेदार तोता सिंह व जैन के मध्य साल 2007 से ही खटास आ गई थी, उस दौरान जैन पर आरोप लगा था कि उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी का चुनाव में साथ दिया था। उस समय से दोनों परिवारों में आई खटास इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि जत्थेदार तोता सिंह व जैन की निजी बोलचाल पूरी तरह बंद हो गई थी। एक ही मंच पर बुलाए जाने पर वहां जो होता था, पूरी जनता देखती थी। उसके बाद बनते बिगड़ते राजनीतिक समीकरणों के बीच कई बार अकाली सुप्रीमो सुखबीर सिंह बादल ने भी प्रयास किया, लेकिन दोनों परिवार अकाली दल में होते हुए भी एक नहीं हो सके। राजनीति के जानकार मानते हैं कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. हरजोत कमल की जीत में बहुत बड़ा योगदान जोगिदर पाल जैन का रहा, क्योंकि उस समय भी अकाली दल के प्रत्याशी जत्थेदार तोता सिंह के बेटे बरजिदर सिंह बराड़ मक्खन थे।
वर्तमान हालात में हरसिमरन कौर बादल केंद्र की मोदी सरकार से इस्तीफा दे चुकी हैं। वहीं शहर की राजनीति में डॉ. हरजोत कमल तेजी के साथ कांग्रेस पार्टी में मजबूत स्तंभ के रूप में उभरकर सामने आ रहे हैं। ऐसे में अकाली दल को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए जरूरी था कि राजनीति के दोनों धुरंधर एक मंच पर आएं। हालांकि जैन अब स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय राजनीति से बाहर चल रहे हैं। दोनों परिवारों के बेटे अक्षित जैन व बरजिदर सिंह बराड़ राजनीतिक मंच पर अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। दोनों का अब एक मंच पर आना जिले की राजनीति में नई इबारत में लिखेगा।