मालगाड़ियों के पहिये थमे, 350 मिलर्स के चेहरे की हवाइयां उड़ी
मोगा किसान आंदोलन के चलते मालगाड़ियों के पहिये थम जाने से एक बार फिर जिले के लगभग 350 राइस मिलर्स के चेहरों पर चिता के भाव दिखने लगे हैं। पिछले सीजन में मार्च में खत्म होने वाला सीजन एफसीआइ व सेंट्रल वेयर हाउस के गोदामों में मिलिग के बाद धान स्टोरेज के लिए स्पेस की कमी के चलते सीजन 31 जुलाई को चार महीने देरी से खत्म हुआ था। इस बार कोविड-19 में जिस प्रकार से स्पेशल ट्रेन यहां के अनाज भंडारों को खाली करने में जुटी थी उससे उम्मीद जागी थी कि धान मिलिग का सीजन इस बार आगाी मार्च महीने में खत्म हो जाएगा क्योंकि लगातार अनाज के भंडार खाली हो रहे थे।
सत्येन ओझा, मोगा
किसान आंदोलन के चलते मालगाड़ियों के पहिये थम जाने से एक बार फिर जिले के लगभग 350 राइस मिलर्स के चेहरों पर चिता के भाव दिखने लगे हैं। पिछले सीजन में मार्च में खत्म होने वाला सीजन एफसीआइ व सेंट्रल वेयर हाउस के गोदामों में मिलिग के बाद धान स्टोरेज के लिए स्पेस की कमी के चलते सीजन 31 जुलाई को चार महीने देरी से खत्म हुआ था। इस बार कोविड-19 में जिस प्रकार से स्पेशल ट्रेन यहां के अनाज भंडारों को खाली करने में जुटी थी, उससे उम्मीद जागी थी कि धान मिलिग का सीजन इस बार आगाी मार्च महीने में खत्म हो जाएगा, क्योंकि लगातार अनाज के भंडार खाली हो रहे थे।
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क्या है मोगा का आंकड़ा
जिले में लगभग 350 राइस मिल्स हैं, जहां हर साल लगभग 1,160 हजार मीट्रक टन धान की मिलिग होती है। हर साल यहां से सीजन में लगभग 400 स्पेशल ट्रेन लगती हैं, तब जाकर एफसीआइ व सेंट्रल वेयर हाउस के गोदामों में नए सीजन की मिलिग का स्पेस मिल पाता है। हालांकि यहां पर एफसीआइ व सेंट्रल वेयर हाउस के पास तीन हजार मीट्रिक टन से भी ज्यादा धान स्टोरेज की क्षमता है। मगर, पिछले सीजन में जिले के गोदामों में मिलिग के बाद तैयार धान की शिफ्टिंग न होने से सीजन की शुरुआत में अनुमानित मिलिग का बीस प्रतिशत स्पेस ही मिल पा रहा था। जिस कारण स्टोरेज को लेकर जमकर विवाद हुआ था। जिला प्रबंधक एफसीआइ विवेक कुमार ने हालांकि बड़े ही पारदर्शी ढंग से मिलर्स की लिस्ट तैयार कर चावल स्टोर कराया था। इसके बावजूद एफसीआइ गोदाम मिलर्स के लिए जंग का मैदान बना रहा था, 31 मार्च तक खत्म होने वाला सीजन 31 जुलाई को खत्म हो सका था।
राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम सिगला के अनुसार सीजन देरी से खत्म होने के कारण मिलर्स को कई करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा था। ज्यादातर मिलर्स बैंक की लिमिट के आधार पर काम करते हैं। स्टोरेज के बाद ही भुगतान होता है। देर से स्टोरेज होने के बाद बैंकों की लिमिट होने के कारण चार महीने ज्यादा ब्याज का भुगतान करना पड़ा था।
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यह है संभावना
एफसीआइ के जिला प्रबंधक विवेक कुमार के अनुसार पिछले सीजन में ज्यादा चावल शिफ्ट नहीं हो सका था। इस बार तो कोविड के दिनों में काफी माल शिफ्ट हो चुका है। पिछले सीजन जैसी स्थिति तो नहीं रहेगी। फिर भी शिफ्टिंग का काम रुकने से असर को पड़ना स्वाभाविक है।
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कारोबारी चिंतित
कोरोना के दिनों में 15 सितंबर तक राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, केरल, असम और बिहार राज्यों के लिए यहां से 222 रैक रवाना हुए थे, जिनमें से करीब 200 रैक धान व गेहूं के थे। जिससे एफसीआइ व सेंट्रल वेयर हाउस के गोदाम में काफी जगह मिल गई थी। मगर, अक्टूबर से मालगाड़ियों के पहिये फिर से थम जाने के कारण स्टोर में रखा चावल व गेहूं की शिफ्टिंग का काम रुक जाने से फिर से कारोबारियों को चिता सताने लगी है कि इस बार सीजन फिर से दो से तीन महीने लेट हो सकता है।