सूबेदार जोगिंदर सिंह की वीरता व अदम साहस से खंट्टे हुए थे दुश्मत के दांत
मोगा के माहला कलां गांव में जन्मे परमवीर चक्र विजेता शहीद सूबेदार जोगिदर सिंह को कृतज्ञ मोगा आज उनकी कृतज्ञता के लिए श्रद्धासुमन अर्पित करेगा। 1962 के भारत चीन युद्ध के समय सूबेदार जोगिदर सिंह ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए चीनी सैनिकों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।
जागरण संवाददाता, मोगा : मोगा के माहला कलां गांव में जन्मे परमवीर चक्र विजेता शहीद सूबेदार जोगिदर सिंह को कृतज्ञ मोगा आज उनकी कृतज्ञता के लिए श्रद्धासुमन अर्पित करेगा। 1962 के भारत चीन युद्ध के समय सूबेदार जोगिदर सिंह ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए चीनी सैनिकों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। उन्हीं के नाम पर मोगा के प्रमुख चौक का नाम सूबेदार जोगिदर सिंह चौक रखा गया है।
सूबेदार जोगिदर सिंह के जीवन पर 2018 में पंजाबी फिल्म 'सूबेदार जोगिदर सिंह'भी बन चुकी है।
मोगा के गांव माहलाकलां में किसान शेरसिंह व मां बीबी कृष्ण कौर के घर में 26 सितंबर 1921 को उनका हुआ था। 28 सितंबर 1936 को वे सिख रेजीमेंट में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए थे। कश्मीर में भी तैनात रहे जोगिदर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लिए जोगिदर सिंह बर्मा जैसे मोर्चो पर लड़े। भारत के आजाद होने के बाद 1948 में जब कश्मीर में पाकिस्तानी कबीलाइयों ने हमला किया तो वहां मुकाबला करने वाली सिख रेजीमेंट का हिस्सा थे। अगस्त 1962 में जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भारत पर हमला कर दिया था तब सूबेदार जोगिदर सिंह ने चीनी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए थे।
सेना ने 20 अक्टूबर को नमखा चू सेक्टर और लद्दाख समेत पूर्वी सीमा के अन्य हिस्सों पर एक साथ हमले शुरू कर दिए। तीन दिनों में चीनी सेना बहुत सारी जमीन पर कब्जा कर लिया था। उस समय ट्विन पीक्स से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में टॉन्गपेंग ला नामक स्थान पर पहली सिख बटालियन की एक डेल्टा कंपनी ने अपना बेस बनाया था, जिसके कमांडर थे लेफ्टिनेंट हरीपाल कौशिक। उनकी डेल्टा कंपनी की 11वीं प्लाटून आईबी रिज पर तैनात थी जिसके कमांडर थे सूबेदार जोगिदर सिंह।
20 अक्टूबर की भोर थी जब असम राइफल्स की बमला आउटपोस्ट के एक जेसीओ ने देखा कि बॉर्डर के पार सैकड़ों की तादाद में चीनी फौज जमा हो रही है। उसने 11वीं प्लाटून को सावधान कर दिया। जोगिदर सिंह ने तुंरत अपने साथियों के साथ योजना बनाना शुरू कर दिया। 23 अक्टूबर की सुबह 4.30 बजे चीनी सेना ने मोर्टार और एंटी-टैंक बंदूकों का मुंह खोल दिया ताकि भारतीय बंकर नष्ट किए जा सकें। फिर छह बजे उन्होंने असम राइफल्स की पोस्ट पर हमला बोला। सुच्चा सिंह ने वहां मुकाबला किया लेकिन फिर अपनी टुकड़ी के साथ आईबी रिज की पलटन के साथ आ मिले। सुबह की पहली किरण के साथ फिर चीनी सेना ने आईबी रिज पर आक्रमण कर दिया ताकि ट्विन पीक्स को हथिया लिया जाए।
सूबेदार जोगिदर सिंह ने वहां की भौगोलिक स्थिति अच्छी तरह समझ ली थी। उन्होंने आइबी रिज पर चतुर प्लानिग के साथ बंकर और खंदकें बनाई थीं। हालत विपरीत थे सिर्फ चार दिन का राशन था, पर्याप्त गोला बारूद भी नहीं था। इस स्थिति में सूबेदार ने साथियों को निर्देश दिए कि चीनी सेना करीब आने पर ही हमला किया जो, ताकि कम गोला बारूद खर्च हो। एक बार तो सूबेदार जोगिदर सिंह के साथी चीनी सेना पर टूट पड़े तो उसे पीछे हटना पड़ा। कुछ समय बाद भारतीय पलटन की नजरों में आए बगैर एक चीनी टोली ऊपर चढ़ गई। भयंकर गोलीबारी हुई। जोगिदर को मशीनगन से जांघ में गोली लगी। जब उनका गनर शहीद हो गया तो उन्होंने 2-इंच वाली मोर्टार खुद ले ली और कई राउंड दुश्मन पर चलाए। उनकी पलटन ने बहुत सारे चीनी सैनिकों को मार दिया था लेकिन उनके भी ज्यादातर लोग मारे जा चुके थे या बुरी तरह घायल थे।
एक पल ऐसा भी आया जब सूबेदार का गोला बारूद खत्म हो गया। कई सैनिक शहीद हो गए। बचे-खुचे सैनिकों को तैयार कर उन्होंने अपनी-अपनी बंदूकों पर बेयोनेट यानी चाकू लगाकर 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' के नारे लगाते हुए चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया। कईयों को मार गिराया। इस बीच बुरी तरह घायल सूबेदार जोगिदर सिंह को युद्धबंदी बना लिया गया। कुछ ही देर बाद वे शहीद हो गए। उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया।