10 साल से पराली को नहीं लगाई आग, फसल का बढ़ा झाड़
एक ओर जहां किसान धान व गेहूं की फसल को काटने के उपरांत नाड़ को आग लगाकर वातावरण दूषित करने में योगदान दे रहे हैं।
राजकुमार राजू, मोगा : एक ओर जहां किसान धान व गेहूं की फसल को काटने के उपरांत नाड़ को आग लगाकर वातावरण दूषित करने में योगदान दे रहे हैं। वहीं गांव सिघावाला का किसान कुलदीप सिंह अपने परिवार समेत अपनी 18 एकड़ जमीन में नाड़ को जलाए बिना फसल की बिजाई करके मुनाफा कमा रहा है और पर्यावरण को भी दूषित होने से बचा रहा है
किसान कुलदीप सिंह ने बताया कि उसके पास 18 एकड़ जमीन है जिसमें वह अपने परिवार के साथ समय-समय पर गेहूं व धान की फसल की बिजाई करते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 10 साल से फसल को काटने के उपरांत सीधे ही हल चलाकर उसमें बिजाई करते हैं।
किसान कुलदीप सिंह का कहना है कि वैसे तो महंगाई के दौर में हर किसान मजबूरी में पराली व नाड़ को आग लगाई जाती है, लेकिन ऐसा करके जहां हम वातावरण को दूषित करते हैं वही फसल बीजने में सहयोग देने वाले मित्र कीड़े भी नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम फसल को काटने के उपरांत खेत में आग न लगाएं तो खेत में जमीन के अंदर रहने वाले मित्र कीड़े भी सुरक्षित रहते हैं। गेहूं की क्वालिटी बनती है बेमिसाल
किसान कुलदीप सिंह ने बताया कि पराली को जलाए बिना गेहूं की हैपीसीडर की मदद से वह पिछले कई वर्ष से बिजाई कर रहे हैं। इस वर्ष उन्होंने 18 एकड़ जमीन पर हैपीसीडर से बिजाई की है। सीधी बिजाई करने से तैयार होने वाली गेहूं की क्वालिटी अन्य गेहूं से बेहतर होती है, क्योंकि पराली के बीच बिजी गई गेहूं जमीन पर नहीं गिरती। गेहूं के दाने का पूरा विकास होता है, जिससे फसल का पुरा मुनाफा मिलता है। वहीं रासायनिक खादों का प्रयोग कम होता है। उन्होंने कहा कि किसानों को सरकार की ओर से खेती उपकरणों पर दी जा रही सब्सिडी लेकर खेती को सहायक धंधा बनाना चाहिए।