'तोशाली की हंसो' देखने वाली आंखें सदा के लिए हुई मुंद
-प्रसिद्ध उपन्यासकार जसवंत सिंह कंवल ने 100 साल सात महीने बाद दुनिया को कहा अलविदा -लहू की लौ लिखकर आतंकवाद से सीधे टकराने वाले कमल को हजारों नम आंखों ने किया विदा
सत्येन ओझा, मोगा : लहू की लौ लिखकर आतंकवाद से सीधे टकराने वाले तेवर प्रख्यात साहित्यकार जसवंत सिंह कंवल के निधन के साथ ही सदा के लिए थम गए। पंजाबी साहित्य में बाबा बोहड़ के नाम से जाने जाते जसवंत कंवल ने 101 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा। पिछले साल जन्म शताब्दी पूरे करने पर उन्हें पंजाब कला परिषद ने 'पंजाब गौरव पुरुस्कार' से भी सम्मानित किया था। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय को जन्म देने वाली मोगा के गांव ढुडीके की धरती पर जसवंत सिंह कंवल ने 27 जून 1919 को जन्म लिया था। सम्राट अशोक कलिगा की लड़ाई जीतकर सम्राट तो बन गए थे, लेकिन उस लड़ाई में हुए हजारों घायल सैनिकों की सेवा कर एक नर्स ने मानवता व शांति का जो संदेश पूरी दुनिया को दिया था, उसी संदेश को कंवल ने अपने उपन्यास 'तोशाली दी हंसो' में रचकर यह संदेश आम लोगों तक पहुंचाया। तोशाली कलिगा नाम स्थान का एक छोटा सा गांव है जहां पर कलिगा का युद्ध लड़ा गया था। उनके इसी उपन्यास के लिए कंवल को 1998 में साहित्य अकादमी अवार्ड से अलंकृत किया गया था। इससे पहले 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी की फैलोशिप मिली थी। उन्होंने 80 साल के साहित्यक सफर में 102 पुस्तकें व उपन्यास लिखे। साल 2008 में गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि से अलंकृत किया गया था। जसवंत सिंह कमल के परिवार में पुत्र सरबजीत सिंह, बेटी अमरजीत कौर, चरनजीत कौर, कंवलजीत कौर और रुपइंदरजीत कौर के इलावा दोहता सुमेल सिद्धू और भतीजा रणजीत सिंह धन्ना शामिल हैं। ये रहीं चर्चित कृतियां
सत्य को फांसी, पूर्णिमा, पाली, रात बाकी है, मित्र प्यारे को, साथी, बर्फ की आग, लहू, की लौ, जिंदगी दूर नहीं चर्चित रचनाएं रहीं। उन्होंने मारना है कि जीना, लहू की लौ, कहानी पुस्तक मुक्ति मार्ग, रूपधारा, मानवता, मोड़, सिविल लाइंस, जंगल के शेर, रात बाकी है, पूर्णिमा, मित्र प्यारे को, गोरा मुख्य सज्जनों का, सत्य को फांसी, देवदास, रूह का साथी, कीचड़ के कमल, जिदगी दूर नहीं, सिदूर, कांटे, हाल मुरीदों का, अपना राष्ट्रीय घर, जित्तनामा, उठो सूरमा, नए सुरमे, हाउका और मुस्कान, आराधना, भावना, जीवन आदि पुस्तकें रखकर पंजाबी साहित्य को समृद्ध किया। 80 साल तक अनवरत लिखा
दुनियाभर में कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती कि किसी लेखक ने 80 साल तक लिखा हो और 100 साल जीने का रिकॉर्ड कायम किया हो। 100 साल तक गंभीर बीमारिया उनसे दूर रही। वह अपनी दिनचर्या खेतों में घूमकर, लिखने की मेज पर बैठकर शुरू करते थे। ..जब सिंगापुर से किताबें छपवाकर पंजाब में बंटवाई
जसवंत सिंह कंवल ने आपात काल के समय नक्सलवाद व पंजाब में आतंकवाद के खिलाफ अपनी कलाम चलाई। उन्होंने लहू की लौ पुस्तक की रचना कर आतंकवाद पर तीखे प्रहार किए थे। उस समय देश में इमरजेंसी लगी होने के कारण कोई भी पब्लिशर जसवंत सिंह कंवल की इस पुस्तक को छापने के लिए तैयार नहीं था तब जसवंत सिंह कमल ने ये उपन्यास सिगापुर से छपवाकर भारत में चोरी छिपे मंगवाकर लोगों तक पहुंचाया था। इमरजेंसी हटने के बाद ही उपन्यास बाद में पंजाब में छप सका। उन्होंने 80 साल तक अनवरत लिखा। पंजाब का रसूल हमजातोव
जसवंत कंवल कई बार गाव के निर्विरोध सरपंच चुने गए। वे ग्रामीण पंजाब, पंजाबी सभ्याचार और समाज के हर उतार-चढ़ाव से बखूबी वाकिफ थे, यहीं कारण है कि उनकी रचनाओं में ग्रामीण समाज की ऐसी छविया और परछाइया और पहलू मिलेंगे जो अन्यत्र कहीं नहीं हैं। लोकभावना की कंवल सरीखी सूक्ष्म समझ उनके किसी दूसरे समकालीन के यहा नहीं पाई गई, इसीलिए कई लोग उन्हें 'पंजाब का रसूल हमजातोव' भी कहते हैं।
ये हस्तियां भी पहुंचीं
सूबे के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु, डिप्टी कमिश्नर संदीप हंस ने उनके निवास पर पहुंचकर कलम के जाबांज सिपाही को अंतिम सलामी दी। उनके अलावा फिल्म निर्देशक मनमोहन सिंह, पंजाबी साहित्य अकादमी के प्रधान रविंद्र भट्ठल, गुरभजन गिल, जतिंदर पन्नू, सुरजीत सिंह कांउके, महासचिव रणजीत सिंह धन्ना, लेखक हरी सिंह, पवन हरचंदपुरी, समेत विधायक डॉ.हरजोत कमल, विधायक बाघापुराना दर्शन सिंह बराड़, विधायक धर्मकोट सुखजीत सिंह लोहगढ़, विधायक संजीव तलवाड़, पूर्व मंत्री मालती थापर, एसएसपी अमरजीत सिंह बाजवा, एसडीएम सतवंत सिंह, पूर्व मंत्री तोता सिंह, गुरमीत सिंह नंबरदार, सरपंच जसबीर सिंह, नायब तहसीलदार मनवीर कौर सिद्धू, गुरचरन सिंह शेरगिल, बलदेव सिंह सड़कनामा, गुरइकबाल सिंह, डीआईजी गुरप्रीत सिंह तूर, तेजवंत सिंह जैसी नामी हस्तियां भी शामिल हुईं।