फाइलों में कचरा प्रबंधन का प्रोजेक्ट, चार करोड़ की मशीन को मंजूरी
मुद्दा-किश्त-2 कैसे बढ़ेगी स्वछता रैकिग -बिना खर्च के 25 साल तक शहर की स्वछता का प्रोजेक्ट पर आठ माह से नहीं हुआ काम -तैयार प्रोजेक्ट में केंद्र से मिलने थे पांच करोड़ कचरा बायोबेस्ट का प्रबंधन का है समाधान
सत्येन ओझा, मोगा : 25 साल तक शहर की स्वच्छता, कचरा प्रबंधन, बायो बेस्ट डिस्पॉज वाला प्रोजेक्ट निगम की फाइलों से आठ महीने बाद भी बाहर नहीं निकल सका है। कार्यकाल के अंतिम दिनों में मेयर अक्षित जैन निगम हाउस की अंतिम बैठक में चार करोड़ रुपये की लागत से मृत पशुओं के निस्तारण के लिए रेडरिग प्लांट खरीदने के प्रस्ताव को पास करा गए। जो काम 25 लाख में होना था, उसके लिए हाउस ने चार करोड़ खर्च करने की मंजूरी दे दी। चार करोड़ वाली मशीन बायो बेस्ट को डिस्पॉज नहीं कर पाएगी, 25 लाख वाली मशीन मरे जानवरों के साथ ही बायोबेस्ट का डिस्पॉज ऑफ कर निगम की इनकम भी बढ़ाएगी।
कड़वा सच ये है कि आज अगर शहर में कहीं भी किसी जानवर की मौत हो जाती है तो उसे उठाने के लिए निगम के पास कोई सुविधा नहीं है, इसकी पुष्टि खुद निगम के सेनेटरी इंस्पेक्टर विकास वासुदेव ने की है।
शहर में गीला कचरा, सूखा कचरा के नाम पर रिमूवेवल डस्टबिन तो लगा दी हैं, लेकिन कई-कई महीने तक खाली न होने से उनका कूड़ा बाहर सड़क पर फैल रहा है। रामगंज में श्री राम पार्क में, डीएम कॉलेज के गेट, सिविल अस्पताल के गेट, देव होटल के सामने पेट्रोल पंप के सामने ऐसे डस्टबिन देखे जा सकते हैं।
शहर में कचरा प्रबंधन की महत्वाकांक्षी योजना पिछले साल मई महीने में तत्कालीन चीफ सेनेटरी इंस्पेक्टर संदीप कटारिया ने बनाकर निगम के अधिकारियों को सौंप दी थी। कटारिया के प्रोजेक्ट में गांव घल्लकलां में बने कूड़े के पहाड़ों के भी निस्तारण के साथ ही 25 साल तक शहर में कचरा प्रबंधन, बायो बेस्ट मेडिकल के प्रबंधन का समाधान भी था। बड़ी बात ये थी कि पांच करोड़ की लागत वाली इस योजना में निगम को फूटी कौड़ी भी नहीं खर्च करनी थी।
ये था प्रोजेक्ट
एक करोड़ रुपये की मशीनरी के साथ पूरा प्रोजेक्ट लगभग पांच करोड़ रुपये की लागत से 10 एकड़ क्षेत्र में लगना प्रस्तावित था। प्रोजेक्ट के तहत गारबेज प्रोसेसिग प्लांट, बायोमेडिकल बेस्ट, कंपोस्ट पिट्स री साइक्लिग प्लांट के अलावा पांच एकड़ क्षेत्र में विशुद्ध कूड़े का डंप बनाने की योजना थी। शहर में प्रतिदिन 70 मैट्रिक टन कूड़ा निकलता है। प्रोजेक्ट के लिए प्रस्तावित प्लांट से प्रतिदिन 250 मीट्रिक टन से ज्यादा कूड़े की प्रोसेसिग होकर उससे खाद तैयार की जानी थी। प्रोजेक्ट के तहत पहले लगभग 25 लाख की लागत के इंसीनेटर से शहर में बायो मेडिकल बेस्ट, मरे हुए जानवरों को डिस्पॉज की सुविधा थी, जिससे निगम की मरे हुए जानवरों की समस्या हल होने के साथ ही आमदनी भी बढ़नी थी। इंसीनेटर से प्रदूषण भी नहीं होना था, साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति भी नहीं लेने की जरूरत थी।
केंद्र से मिलनी थी प्रोजेक्ट के लिए राशि
स्वच्छ भारत योजना के तहत शहर की आबादी के हिसाब से प्रति व्यक्ति 245 रुपये के हिसाब से मोगा को पांच करोड़ रुपये इस प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार से मिलने हैं। ये राशि तभी मिलेगी जब ये प्रोजेक्ट भारत सरकार तक पहुंचे, क्योंकि केंद्र सरकार के स्टैंडर्ड के अनुसार ही प्रोजेक्ट तैयार किया गया था। हैरानी की बात है कि शहर की स्वच्छता व निगम की आमदनी बढ़ाने वाला ये प्रोजेक्ट मई महीने से अभी तक निगम की फाइलों से ही बाहर नहीं निकला है।
चार करोड़ के रेडरिग प्लांट को दी मंजूरी
आठ महीने से निगम की फाइलों दबे इस लाभकारी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के बजाय मेयर अक्षित जैन की अध्यक्षता वाले हाउस में 25 लाख से इंसीनेटर के प्रस्ताव को छोड़ निगम हाउस की 17 दिसंबर को हुई बैठक में आउट ऑफ एजेंडा प्रस्ताव लाकर चार करोड़ रुपये की लागत वाले रेडरिग प्लांट खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। सरकार ने इस प्रस्ताव को अभी तक मंजूरी नहीं दी है। दावा किया गया था कि रेडरिग प्लांट से मरे हुए जानवरों को डिस्पोज ऑफ किया जाएगा।