पार्किंग में डिलीवरी के दोषियों को माफी देने की तैयारी?
मोगा प्रसव पीड़ा से चीखते महिलाओं की नौ महीने में दो बार मथुरादास सिविल अस्पताल के चिकित्सकों के कानों में नहीं पड़ी थी जिस कारण दूसरी बार अस्पताल की पार्किंग के फर्श पर हुई डिलीवरी के मामले में दूसरी बार भी चिकित्सक जांच में दोषी पाए गए हैं लेकिन उन्हें माफी देने के लिए ग्राउंड बनाने के लिए वीरवार को परिवार कल्याण विभाग की डायरेक्टर डा. प्रभदीप कौर मोगा पहुंची थी।
सत्येन ओझा/राजकुमार राजू, मोगा
प्रसव पीड़ा से चीखते महिलाओं की नौ महीने में दो बार मथुरादास सिविल अस्पताल के चिकित्सकों के कानों में नहीं पड़ी थी, जिस कारण दूसरी बार अस्पताल की पार्किंग के फर्श पर हुई डिलीवरी के मामले में दूसरी बार भी चिकित्सक जांच में दोषी पाए गए हैं, लेकिन उन्हें माफी देने के लिए ग्राउंड बनाने के लिए वीरवार को परिवार कल्याण विभाग की डायरेक्टर डा. प्रभदीप कौर मोगा पहुंची थी। डा. प्रभदीप कौर ने सिविल अस्पताल के विभिन्न वार्डो का दौरा किया। इस मौके पर डा. प्रभदीप कौर ने स्वीकार किया कि डिलीवरी के मामले में चिकित्सकों की लापरवाही सामने आई है, इसके साथ अस्पताल के जच्चा-बच्चा वार्ड में ही कुछ कमियां हैं, उसी का निरीक्षण करने वे यहां पहुंची हैं। दोषी चिकित्सकों पर कार्रवाई कब होगी, यह पूछने पर वह अस्पताल की बिल्डिंग की कमियां बताकर मामले के बारे में कोई भी जानकारी देने से कतराती रहीं।
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वार्डो का किया निरीक्षण
डा. प्रभदीप कौर ने वीरवार को मोगा के जच्चा-बच्चा वार्ड, ओपीडी व इमरजेंसी का निरीक्षण किया। इस दौरान मीडिया का सामना होने पर डा. प्रभदीप कौर ने माना कि जच्चा-बच्चा वार्ड में सफाई की समस्या है। ओपीडी की इमारत छोटी है। नए गायनी वार्ड को पुराने से अटैच करने से भी समस्या बढ़ी है। वहीं इमरजेंसी के कामकाज पर भी असंतोष जताया। दस अक्टूबर को फर्श पर डिलीवरी के मामले में उन्होंने माना कि इसमें चिकित्सकों की लापरवाही हुई है। यह तो खुशकिस्मती है कि मां व नवजात बच्ची ठीक हैं।
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यह है मामला
गांव जलालाबाद पूर्वी स्थित एक ईट भट्ठा पर काम करने वाले उत्तर प्रदेश के जिला शामली का रहने वाला मजदूर रविदर कुमार 10 अक्टूबर को अपनी गर्भवती बहन 19 वर्षीय अंकिता पत्नी सरवन व अंकिता की सास शकुंतला के साथ सुबह 5.03 बजे सिविल अस्पताल के महिला वार्ड में पहुंचा था। जहां सुबह लगभग 5.30 बजे उस समय महिला व बाल विभाग में तैनात चिकित्सक डा. सिमरत कौर ने गर्भवती अंकिता का चेकअप करने के बाद खून में हीमोग्लोबिन की कमी (6.7 ग्राम) बताकर उसे रेफर करने की स्लिप थमा दी थी। मगर, कुछ देर बाद ही अस्पताल की पार्किंग के फर्श पर अंकिता की नार्मल डिलीवरी उसकी सास शकुंतला ने कुछ महिलाओं के साथ मिलकर करा दी थी।
इसके बाद रविदर कुमार अपनी नवजात भांजी व बहन का इलाज शुरू करवाने के लिए ढाई घंटे तक उन्हें स्ट्रेचर पर लेकर अस्पताल में घूमता रहा। मगर, ढाई घंटे बाद इलाज तब शुरू हुआ था, जब मामला एसएमओ डा. राजेश अत्री के संज्ञान में आया था। उन्होंने तत्काल इलाज शुरू कराने के साथ ही उन्हें नि:शुल्क एंबुलेंस भी फरीदकोट मेडिकल कालेज छोड़ने के लिए उपलब्ध कराई थी।
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इस बारे में जांच में सिविल सर्जन डा. अमरजीत कौर बाजवा ने पीड़ित के बयान दर्ज किए बिना व एसएमओ को दिए शिकायत पत्र को छिपाकर रिपोर्ट डायरेक्टर हेल्थ डा. मंजीत सिंह को सौंप दी थी, जिसमें अस्पताल के स्टाफ को क्लीनचिट दे दी थी। मगर, डायरेक्टर डा. मंजीत सिंह ने सिविल सर्जन की रिपोर्ट ठुकराकर डिप्टी डायरेक्टर डा. सतपाल सिंह के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। इसमें जांच कमेटी ने अस्पताल के मेडिकल स्टाफ को दोषी पाया है। यह रिपोर्ट डायरेक्टर स्वास्थ्य विभाग, सचिव व स्वास्थ्य मंत्री बलवीर सिंह को सौंप दी गई है।
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नया नहीं है दोषियों को माफी देना
सिविल अस्पताल में इससे पहले इसी साल नौ जनवरी को लेबर रूम के बाहर प्रसव पीड़ा से चीखती अमनप्रीत कौर की चीख अस्पताल का स्टाफ नहीं सुन सका था। तब लेबर रूम के सामने ही डिलीवरी हो गई थी। बच्चा फर्श पर जा गिरा था और चोट लगने के कारण कुछ दिन बाद उसकी मौत हो गई थी। इस मामले में सिविल अस्पताल का चिकित्सक दंपती जांच में दोषी पाया गया था, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने नियमों के खिलाफ जाकर उन्हें माफी दे दी थी। अब दोबारा नौ महीने बाद फिर से वही बात दोहराई जा रही है।