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निजी स्कूलों की किताबों की कीमत पेरेंट्स का निकाल रही दम

कोरोना काल में जब पेरेंट्स आर्थिक मंदी से जूझ रहे हैं इस माहौल में निजी स्कूलों की फीस ही नहीं बल्कि पुस्तकें भी कई गुणा महंगे दामों में बिक रही है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Apr 2021 10:42 PM (IST)Updated: Thu, 22 Apr 2021 10:42 PM (IST)
निजी स्कूलों की किताबों की कीमत पेरेंट्स का निकाल रही दम
निजी स्कूलों की किताबों की कीमत पेरेंट्स का निकाल रही दम

तरसेम सचदेवा, कोट ईसे खां : कोरोना काल में जब पेरेंट्स आर्थिक मंदी से जूझ रहे हैं, इस माहौल में निजी स्कूलों की फीस ही नहीं, बल्कि पुस्तकें भी कई गुणा महंगे दामों में बिक रही है। निजी स्कूलों के इस रवैये से तंग आकर पेरेंट्स का रुख अब तेजी के साथ सरकारी स्कूलों की तरफ बढ़ता जा रहा है। सरकारी स्कूलों में पिछले कुछ सालों में इन्फ्रास्ट्रक्चर में न सिर्फ गुणवत्ता परक सुधार हुआ है, बल्कि फीस भी न के बराबर है। किताबों का बोझ भी नहीं है। बच्चे व पेरेंट्स तनाव से भी मुक्त रहते हैं।

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दैनिक जागरण ने कस्बे के स्कूलों व पुस्तक विक्रेताओं की पड़ताल की तो इन दिनों किताबों के नाम पर बड़े पैमाने पर हो रही कालाबाजारी का बड़ा सच सामने आया।

सीबीएसई से मान्यता प्राप्त एक स्कूल की पुस्तकों की केवल दो दुकानों पर बिक्री की जा रही है। जहां तीसरी कक्षा के एक बच्चे की किताबों का बिल 3960 रुपये बना, जबकि सातवीं कक्षा के विद्यार्थी की किताबों का बिल 4819 रुपये बना। ये बिल भी दस प्रतिशत कम करके दिया गया है। जब पुस्तकें खोलकर देखीं तो कुछ पुस्तकों पर तो मूल्य प्रिट नहीं था, जबकि तीसरी कक्षा की मैथेमैटिक्स की 20 पेज की एक पुस्तक थी, उस पर मूल्य 320 रुपये प्रिट था। जब उसके बारे में स्कूल की पुस्तकें न बेचने वाले एक विक्रेता से पूछा तो उसने बताया कि इस प्रकार की पुस्तकें ओपन मार्केट में 80-85 रुपये में उपलब्ध है।

एक अन्य स्कूल ने तो अपने स्कूल के सामने ही अपने करीबी रिश्तेदार को किताबों की दुकान खुलवा दी है। स्कूल से किताबों की जो सूची दी जा रही है, वह सिर्फ इसी दुकान पर उपलब्ध है। इस संबंध में दुकानदार से पूछा गया तो उसने बताया कि स्कूल किताबें सिलेक्ट करके सीधे प्रकाशक से आर्डर देकर मंगवाते हैं। पुस्तकों पर मूल्य स्कूल प्रबंधन की मर्जी का होता है, उन्हें तो सिर्फ पुस्तकों की रेट लिस्ट आती है। उसी रेट पर उन्हें बच्चों को किताबें बेचनी पड़ रही हैं। प्रति सेट उन्हें तो 50 से 100 रुपया ही मिलता है।

गौरतलब है कि पुस्तकें पहले स्कूलों से ही बेची जाती थीं, लेकिन लगातार खबरें छपने के बाद जब जिला प्रशासन सख्त हुआ तो अब स्कूल संचालकों ने पुस्तकें बेचने का तरीका बदल दिया है। आर्डर देकर पुस्तकें खुद मंगाते हैं, बाद में दुकानदारों को प्रति सैट के हिसाब से तय कर लिया जाता है, दुकानदारों को ये लालच होता है कि किताबों के साथ उनकी कापियां भी बिक जाती हैं।

डीसी और कंज्यूमर फोरम में करेंगे शिकायत

शहर के समाजसेवी डा. विजय कुमार शर्मा, पाली छाबड़ा, बलजीत सिंह सोही ने किताबों के इस गैर-कानूनी धंधे की निदा की। कहा कि जल्द ही इस पूरे मामले की लिखित शिकायत वे डीसी से करेंगे। कई किताबों पर तो प्रिट रेट तक नहीं लिखा है। कंज्यूमर फोरम में भी इसकी शिकायत करेंगे।

शिकायत मिली तो कार्रवाई करवाएंगे : एडीसी

इस संबंध में जब डीसी की अनुपस्थिति में इस पद को संभाल रहीं एडीसी अनीता दर्सी से बात की तो उन्होंने बताया कि उनके पास इस प्रकार की कोई जानकारी नहीं है। अगर पैरेंट्स की ओर से इस मामले में कोई लिखित शिकायत मिलेगी तो इस मामले की जांच कराई जाएगी। किताबों की आड़ में अगर कोई गलत कर रहा है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।


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