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न बिचौलिए और न बारदाना, पंजाब में यहां 13 वर्षों से बिना झंझट मुनाफा कमा रहे हैं किसान

पंजाब में किसान फसलों की खरीद में एमएसपी पर खतरे की आशंका में आंदाेलन कर रहे हैं। किसान पंजाब मेें निजी कंपनियों के अनाज गोदामों का घेराव करने की तैयारी में हैं। दूसरी ओर मोगा में किसान 13 वर्षों से निजी कंपनी को अनाज बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2020 08:13 PM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2020 08:52 PM (IST)
न बिचौलिए और न बारदाना, पंजाब में यहां 13 वर्षों से बिना झंझट मुनाफा कमा रहे हैं किसान
पंजाब के मोगा स्थित साइलो स्टोरेज प्लांट में अपनी फसल बेचते किसान।

मोगा, [सत्येन ओझा] एक तरफ पंजाब में किसान प्राइवेट कंपनियों के अनाज भंडारों का विरोध कर उनके घेराव की तैयारी कर रहे हैं, दूसरी ओर मोगा के डगरू गांव में बना प्राइवेट कंपनी का साइलो स्टोरेज प्लांट गेहूं बेचने वाले हजारों किसानों की 13 साल से पहली पसंद बना हुआ है। साइलो स्टोरेज प्लांट स्टील से बना बड़ा अनाज का स्टोर होता है, जहां किसानों से खुली गेहूं लेकर उसका भंडारण किया जाता है।

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मोगा में गेहूं बेचने के लिए 5500 किसानों की पहली पसंद बना साइलो प्लांट

मोगा के गांव डगरू में स्थित अडानी ग्रुप के साइलो स्टोरेज प्लांट से मोगा व कोटकपूरा के 5500 किसान जुडे़ हैं। वे मंडी जाने के बजाय यहां अपनी गेहूं बेचते हैं। इससे उन्हें प्रति ट्रॉली चार से पांच हजार रुपये का फायदा होता है। साइलो प्लांट में स्टोरेज के लिए न तो बारदाने (जूट की बोरी) की जरूरत होती है न तुलाई और न सफाई की। ज्यादा लेबर की जरूरत भी नहीं पड़ती। 48 से 72 घंटे के अंदर पेमेंट उनके बैंक खाते में आ जाती है।

प्रति ट्रॉली चार से पांच हजार रुपये ज्यादा कमा रहे, खुला गेहूं ले जाते हैं प्लांट पर, 72 घंटे में भुगतान

2005 में बने दो लाख मीट्रिक टन भंडारण क्षमता वाले प्लांट के लिए कंपनी का एफसीआइ से 20 साल के लिए अनुबंध हुआ था। यहां आधुनिक तकनीक से गेहूं का भंडारण किया जाता है, जिससे गेहूं कई वर्षो तक सुरक्षित रहती है। पांच साल से यहां हर साल औसतन 80 हजार मीट्रिक टन गेहूं का भंडारण हो रहा है। जिले की कुल पैदावार का 20 फीसद से ज्यादा गेहूं यहां स्टोर हो सकता है।

भीगने का खतरा नहीं, बिक्री के लिए इंतजार नहीं

पिछले 10 वर्षो से साइलो स्टोरेज प्लांट में गेहूं बेच रहे गांव घल्लकलां के किसान सतपाल सिंह का कहना है कि मंडी में आठ रुपये प्रति बोरी लोडिंग के देने पड़ते हैं। यहां ये राशि नहीं देनी होती। गेहूं खेत से सीधे खुले रूप में ट्रैक्टर ट्रालियों में भरकर लाते हैं। मंडी में दो से तीन दिन तक रुकना पड़ता है, जबकि यहां गेट में प्रवेश करने के बाद आधे घंटे में तुलाई के बाद फ्री हो जाते हैं।

दबाव में विरोध कर रहे किसान

गांव इंद्रगढ़ में महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी के साथ 15 साल पहले कांट्रेक्ट फाम्रिंग करने वाले किसान मनजिंदर सिंह आज 100 एकड़ में खेती कर रहे हैं। 15 साल से मंडी नहीं गए। उनकी आय भी दोगुनी हो चुकी है, लेकिन राजनीतिक दबाव में किसान आंदोलन में सक्रिय रहे। साइलो स्टोर में गेहूं बेचने वाले घल्लकलां के किसान सतपाल भी आढ़तियों के दबाव में विरोध में शामिल हैं।

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कृषि अधिनियम किसानों के हित में, किसानों को समझाने की जरूरत: कंग

'' इस अधिनियम से बिचौलिए खत्म होंगे और किसानों को ज्यादा लाभ मिलेगा। जिन बिंदुओं पर राजनीतिक दल व किसान संगठन विरोध कर रहे हैं, उन्हें एक्ट में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। किसानों को इस एक्ट की खूबियां समझाने की जरूरत है। अधिनियम की मुख्य तीन बातें हैं। पहला एमएसपी, दूसरा मंडी और तीसरा कांट्रेक्ट फाìमग। किसानों में इस बात को लेकर भ्रम है कि नए एक्ट से एमएसपी खत्म हो जाएगी, जबकि इसमें एमएसपी खत्म होने का कोई जिक्र नहीं है। जहां तक मंडियों की बात है। आढ़तियों को जाने वाला कमीशन किसानों के पास ही बचेगा। किसानों को ज्यादा कीमत मिलेगी। कांट्रेक्ट फाìमग से किसानों की जमीनें छीने जाने की चर्चा गलत है। उनकी जमीन कभी कोई नहीं ले पाएगा। उलटा कांट्रेक्ट फाìमग में उन्हें अच्छे दाम मिलेंगे।

                                            - डॉ. मनजीत सिंह कंग, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर।

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