जिले में बढ़ी पुलिस अधिकारियों की फौज, कांस्टेबलों की कमी
मोगा आनरेरी रैंक लेकर तरक्की पाकर मोगा में बड़े पद पर भर्ती की होड़ पुलिस अधिकारियों में इस कदर मची हुई है कि यहां पर गजटेड पुलिस अधिकारियों के स्वीकृत 10 पदों की तुलना में 1
दविदर पाल सिंह, मोगा : आनरेरी रैंक लेकर तरक्की पाकर मोगा में बड़े पद पर भर्ती की होड़ पुलिस अधिकारियों में इस कदर मची हुई है कि यहां पर गजटेड पुलिस अधिकारियों के स्वीकृत 10 पदों की तुलना में 18 गजटेड अफसरों की नियुक्तियां हो चुकी हैं। नए अफसरों को बैठने के लिए ऑफिस तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, वे अपने अधीनस्थों के ऑफिसों पर कब्जा जमा रहे हैं, उधर कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर तक के स्वीकृत पदों की तुलना में 350 खाली पड़े हैं। खाली पदों के अलावा बड़ी संख्या में पुलिस मुलाजिम नेताओं के अंगरक्षक बनकर उनका रूतबा बढ़ा रहे हैं। यही वजह है कि दिन प्रतिदिन जिले में अपराध लगातार बढ़ रहा है, चोर लुटेरे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो रहे हैं, पुलिस उन्हें भी नहीं तलाश पा रही है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार पुलिस अफसरों की बढ़ती फौज के चलते संसाधनों की कमी भी महसूस की जा रही है। नए पुलिस अधिकारी मेज कुर्सी रखने के लिए कमरे तलाश रहे हैं। डीएसपी सीआइडी पद मोगा जिले में मंजूर नहीं है, लेकिन यहां डीएसपी सीआइडी की तैनाती है। इस पद पर ऐसे अधिकारी तैनात हैं, जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सेवाकाल में विस्तार देकर तैनात किया गया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर को तरसे अधिकारी
जिला बनने के 23 साल बाद भी जिला पुलिस प्रमुख अपने विभाग के आवास के लिए तरस रहे हैं, आज तक एसएसपी आवास नहर विभाग के आराम घर की बिल्डिग में बना हुआ है। पुलिस लाइन औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आइटीआइ) में चल रही है। थाना एनआरआइ स्कूल शिक्षा बोर्ड की इमारत में है, जबकि थाना सिटी साउथ नगर निगम की खस्ता हालत बिल्डिग में चल रहा है। नए तैनात होकर आए पुलिस अफसरों के साथ कांस्टेबल उनके बतौर अंगरक्षक (गार्ड) बनकर चल रहे हैं। थानों में कांस्टेबलों की संख्या नाम मात्र है। 150 से ज्यादा कांस्टेबल नेताओं के सुरक्षा गार्ड बनकर उनका रूतबा बड़ा रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या ऐसे कांस्टेबलों की भी है जिनकी रिकार्ड में तैनाती पुलिस लाइन में है, जबकि वे नेताओं को सुरक्षा गार्ड के रूप में चलते हैं, जिससे सरकारी खजाने को भी चूना लग रहा है, अपराध दर बढ़ने से जनता में भी असुरक्षा का माहौल तैनात है।
मुलाजिमों को देनी पड़ रही 24 घंटे ड्यूटी
थानों में तैनात पुलिस मुलाजिमों ने बताया कि मुलाजिमों की कमी के चलते उन्हें 24 घंटे ड्यूटी देनी पड़ रही है। साप्ताहिक छुट्टी का नियम है, लेकिन उन्हें नहीं मिलता है। तीन रुपये में मुलाजिमों का पेट भरती है सरकार
गृह विभाग की ओर से 30 साल पहले 2 अक्तूबर 1989 को मुलाजिमों का 100 रुपये प्रति माह यानि दिन में तीन टाइम के भोजन के भत्ते की दर तीन रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तय किया गया था। आज भी पुलिस मुलाजिमों को इतना ही राशन भत्ता दिया जा रहा है।
अफसरों की फौज होने के बाद भी बढ़ रही अपराध दर
यहां आला अफसरों की फौज होने के बावजूद चोरी घटनाएं और नशा तस्करी रुक नहीं रही है। पिछले तीन माह में करीब 40 से अधिक वारदातें लूट व चोरी की हो चुकी हैं। लुटेरे सीसीटीवी में कैद होने के बावजूद पुलिस उन्हें नहीं तलाश पा रही है, जिससे जनता में असुरक्षा का माहौल बना हुआ है।