Move to Jagran APP

सेवा के लिए नहीं अपने लिए चुनाव लड़ते हैं नेता

फोटो-37 चुनावी चौपाल में छलका बुर्जुगों का दर्द -संसद या विधानसभा में जाकर अपनी पेंशन की चिता रहती है नेताओं को -जरूरतमंद को पेंशन मिले न मिले इसका चिता नहीं मर चुकी हैं संवेदनाएं

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 10:12 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:30 AM (IST)
सेवा के लिए नहीं अपने लिए चुनाव लड़ते हैं नेता
सेवा के लिए नहीं अपने लिए चुनाव लड़ते हैं नेता

सत्येन ओझा, मोगा : समय दोपहर लगभग 1.10 मिनट। जवाहर नगर से श्री रामनवमी शोभायात्रा गुजर चुकी थी। पारा 34 के पार जा चुका था। कुछ बुजुर्ग निकट ही एक कपड़े की दुकान पर कुछ पल गर्मी से राहत पाने को बैठ गए थे। आजादी के बाद से लेकर अब तक के सभी चुनाव देख चुके इन बुजुर्गों के बीच राजनीति के बदलते दौर पर चर्चा शुरू की तो बुजुर्गों का दर्द उनकी जुबान से फूट पड़ा।

loksabha election banner

केन्द्र सरकार में ए ग्रेड अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं देने वाले 75 की उम्र पार कर चुके सुभाष घई तमतमा गए, बोले-अब तो चुनाव डांग टपाऊ है, नेता सेवा के लिए नहीं, अपने-अपने परिवार के भविष्य के लिए चुनाव लड़ते हैं, अब किसी नेता पर विश्वास नहीं होता। विधायक या सांसद बनकर अपनी पेंशन की तो चिता रहती है, लेकिन जरूरतमंद, बेसहारा को पेंशन मिलती है या नहीं इसका अहसास आज के नेताओं में नहीं है। पैसों के बल पर राजनीति करने वाले नेताओं की संवेदनाएं मर चुकी हैं।

घई अभी अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे कि 70 बसंत पार कर चुके मंडी बोर्ड में इंस्पेक्टर रहे सतीश सिगला बिफर पड़े। चुनाव में नेता सुधार का वादा करते हैं, लेकिन सुधार जनता का नहीं, अपना करते हैं। लोकतंत्र में वोट तो देना पड़ता है, लेकिन आज के नेताओं के साथ जनता का आत्मीयता का संबंध अब खत्म हो चुका है। वोट देते समय अब ये नहीं सोचते हैं कि कौन अच्छा है, बस ये सोचकर वोट देना पड़ता है कि तुलनात्मक रूप से कौन कम बुरा है। राजनीति का स्तर गिरने की वजह है कि नौकरशाही भी नियंत्रण से बाहर हैं, शिक्षा विभाग में काम कर चुके एक बुजुर्ग बोल पड़ते हैं, आज के मुलाजिम मुलाजिम नहीं, सही मायने में वे जनता के मुजरिम हैं, छोटे से छोटा काम बिना पैसों के नहीं हो सकता है। आज के नेता भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं। इसलिए नौकरशाही पर कोई अंकुश नहीं रह गया है। हर जगह भ्रष्टाचार है, हर सरकार में भ्रष्टाचार है लेकिन अपना भ्रष्टाचार कोई मानने को तैयार नहीं है, एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं।

शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त पूर्व प्रिसिपल राजीव गुप्ता कहते हैं कि अब तो मन में आता है पार्टियों से ऊपर उठकर अच्छे व्यक्तियों को वोट दें, पार्टी के आधार पर नहीं, ताकि आने वाले समय में पार्टियां अच्छे लोगों को प्रत्याशी बनाने को मजबूर हो जाएं।

चर्चा में मास्टर चमनलाल, दिनेश गुप्ता, महेन्द्र पाल गुप्ता, सतीश जैन, हरीश बांसल, इन्द्रजीत राही, प्रिसिपल राजीव गुप्ता, रमेश मित्तल ने हिस्सा लिया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.