अंधेरे में पढ़ रहे बच्चे, न प्रशासन को रहम, न डीईओ ने उठाया कोई कदम
मोगा सरकारी प्राइमरी स्कूल नं. 3 में पढ़ रहे मासूम बच्चों पर आखिरकार डिप्टी कमिश्नर संदीप हंस को रहम नहीं आया। शिक्षा मंत्री ओपी सोनी भी पूरा ब्यौरा हासिल करने के बाद बेअसर ही दिखे।
जागरण संवाददाता, मोगा : सरकारी प्राइमरी स्कूल नं. 3 में पढ़ रहे मासूम बच्चों पर आखिरकार डिप्टी कमिश्नर संदीप हंस को रहम नहीं आया। शिक्षा मंत्री ओपी सोनी भी पूरा ब्यौरा हासिल करने के बाद बेअसर ही दिखे। मंत्री के निजी सचिव ने इस संबंध में डीईओ प्राइमरी सर्बजीत ¨सह तूर को इस समस्या का तत्काल हल करने के लिए कहा, उसके बाद डीईओ सक्रिय तो हुए, लेकिन पॉवरकॉम के अधिकारियों ने उनकी एक नहीं मानी। हालांकि डीईओ दावा कर रहे हैं कि सोमवार तक बिजली कनेक्शन जोड़ दिया जाएगा।
उधर स्कूल के अध्यापकों ने शुक्रवार को आपस में पैसों का कलेक्शन कर स्कूल को दान दिए जेनरेटर में डीजल डलवाकर किसी तरह स्कूल की पानी की टंकी तो भर ली, लेकिन बाद में बच्चों को कमरों में अंधेरे में ही पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकारी स्कूल की ये स्थिति तब है जब वहां के स्टाफ ने एनआरआइ लोगों की मदद से न सिर्फ पूरे स्कूल की कायापलट की है, बल्कि एनआरआइज की मदद से स्कूल के एक हॉल को स्मार्ट क्लास का रूप देकर वहां डिजिटल टेक्नोलॉजी से निजी स्कूलों की तरह बच्चों को शिक्षा देने का प्रबंध किया है।
शुक्रवार को पावरकॉम से बिजली बिलों की बकाया सूची हासिल करने की कोशिश की तो दिन भर पावरकॉम के अधिकारी बकाया बिलों की सूची देने में आना कानी करने का प्रयास करते रहे। काफी प्रयास करने पर मथुरादास सिविल अस्पताल पर 42 लाख, बीएसएनल पर 15 लाख रुपये के बिलों की आधिकारिक जानकारी ही उपलब्ध हो सकी। एक्सईएन दिन भर ये कहकर बहानेबाजी करते रहे कि सरवर डाउन होने के कारण सूची ¨प्रट नहीं हो पा रही है, लेकिन विभाग के ही एकाउंट विभाग के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकारी संस्थानों पर ही करोड़ों का बकाया है। शहर के कई कमर्शियल संस्थानों पर लाखों-लाखों के बिल बकाया है, उनके पास न तो मुलाजिम वसूली के लिए जाते हैं, न ही बिजली कनेक्शन काटते हैं।
दोपहर लगभग सवा 12 बजे स्कूल परिसर में स्टाफ जेनरेटर के माध्यम से स्कूल की टंकी में पानी भरवा चुका था। लेकिन डीजल सीमित मात्रा में होने के कारण जेनरेटर कुछ समय चलने के बाद बंद हो चुका था, बच्चे क्लास रूप में बहुत ही कम रोशनी में पढ़ने को मजबूर हो रहे थे। कुछ कक्षाओं को धूप निकलने के कारण स्टाफ ने बाहर फर्श पर बैठाकर पढ़ाना शुरू कर दिया था, क्योंकि स्कूल की बि¨ल्डग के चारों तरफ आबादी होने के कारण स्कूल के कमरों के सभी रोशनदान बंद हो चुके हैं, कमरों में रोशनी आने का कोई साधन नहीं है, रोशनी के लिए ट्यूबलाइट्स ही एक मात्र साधन है, लेकिन 11 फरवरी को बिजली सप्लाई काट दिए जाने के कारण बच्चे अब अंधेरे में ही पढ़ने को मजबूर हैं। स्मार्ट क्लास भी हुई फेल
स्कूल की पहली मंजिल पर स्मार्ट क्लास में बच्चे बैठे हुए थे। स्मार्ट क्लास निजी स्कूलों की तरह ही बनाई गई थी, स्कूल स्टाफ से पता चला कि स्मार्ट क्लास के लिए सरकार से कोई फंड नहीं मिला था, स्कूल में प्राध्यापिका रह चुकीं कंचन भल्ला ने एनआरआइ व शहर के कुछ दानी लोगों की मदद से स्मार्ट क्लास बच्चों के लिए बनवाई थी, ताकि यहां पढ़ने वाले गरीब परिवार के बच्चे निजी स्कूल के बच्चों की तरह मुख्य धारा में शामिल होकर शिक्षा ग्रहण कर सकें। कंचन भल्ला के सेवानिवृत होने के बाद बाकी स्टाफ ने भी लोगों की मदद से जेनरेटर व बच्चों की सुविधा के लिए स्कूल में उल्लेखनीय काम कराए हैं, लेकिन स्टाफ की मेहनत पर 11 फरवरी से पानी फिर चुका है, बिजली कट जाने के कारण स्मार्ट क्लास भी स्मार्ट वर्क नहीं कर पा रही थी।