शिअद के गढ़ में सरकारी मंच से राहुल गांधी खेलेंगे सियासी खेल, कांग्रेस का नया दांव
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 7 मार्च को शिअद के गढ़ मोगा में रैली को संबोधित करेंगे। कहने को तो यह सरकारी रैली होगी लेकिन कयास है कि राहुल इसमें सियासी दांव खेलेंगे।
मोगा, [सत्येन ओझा]। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के गढ़ मोगा में 7 मार्च को रैली को संबोधित करेंगे। इसे अब सरकारी रैली घोषित कर दिया गया है और इसका नाम भूमिहीनों को भूमि एवं किसान कर्जा माफी रैली दिया गया है। कैप्टन की कैबिनेट के नए फैसले के बाद अब सरकारी मंच से पार्टी प्रधान राहुल गांधी सियासी दांव खेलेंगे।
अब नाम 'जय जवान, जय हिंदुस्तान रैली' नहीं किसान कर्जामाफी रैली होगा
पहले रैली के लिए तैयार किए जाने वाले पंडाल का नाम शहीद जैमल सिंह पर रखने का विचार था। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ की ओर से इस रैली का नाम जय जवान, जय हिंदुस्तान रखने का प्रस्ताव था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष महेशइंदर सिंह ने बताया कि रैली सरकारी हो जाने के कारण पंडाल का नाम अब शहीद जैमल सिंह नहीं दिया जा रहा है। विधायक डॉ. हरजोत कमल ने खुलासा किया कि कांग्रेस की रैली को सरकारी रैली में बदलने का फैसला 1 मार्च की कैबिनेट की बैठक में लिया गया था। हालांकि सरकार की ओर से कैबिनेट के इस फैसले को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
अभी तक रैली का सिर्फ स्वरूप ही बदला है, कांग्रेस की सियासी रैली को सरकारी रैली घोषित किया गया है, लेकिन सरकारी मंच से कांग्रेस पूरी तरह सियासत की गोटियां फिट करने की तैयारी कर रही है, यही वजह है कि रैली की तैयारियों में सरकार कम कांग्रेस के नेता ज्यादा नजर आ रहे हैं।
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दिल्ली से मोगा पहुंची एसपीजी की टीम
इस रैली में राहुल गांधी के पहुंचने के चलते दिल्ली एसपीजी की टीम सोमवार सुबह ही मोगा पहुंच गई थी। टीम ने मोगा से लगभग 18 किलोमीटर दूर रैली स्थल किली चाहला का निरीक्षण किया। बाद में शहर के एक होटल में डीजीपी दिनकर गुप्ता के साथ सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बैठक की। डीजीपी दिनकर गुप्ता भी दोपहर में ही मोगा पहुंच गए थे, उन्होंने रैली की तैयारियों के संबंध में अधिकारियों के साथ कई दौर की बातचीत की।
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डीसी ने लिया रैली स्थल का जायजा
डिप्टी कमिश्नर संदीप हंस भी जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ रैली स्थल पर पहुंचे एवं तैयारियों का जायजा लिया। अचानक सरकारी रैली घोषित किए जाने के कारण प्रशासन अभी यह तय नहीं कर पाया है कि रैली में कितने लाभार्थी किसानों को कर्जा माफी के सर्टीफिकेट दिए जाएंगे व कितने भूमिहीनों को भूमि के पट्टे दिए जाएंगे।
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रैली तो रैली होती है, नाम मायने नहीं रखता : राणा
रैली को लेकर कांग्रेस में इस प्रकार से असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि रैली स्थल का निरीक्षण करने पहुंचे खेल मंत्री राणा गुरमीत सिंह से जब पूछा गया कि इस रैली को क्या नाम दिया गया है तो वह कुछ भी स्पष्ट नहीं बता पाए । उन्होंने सिर्फ यही कहा कि कांग्रेस की रैली, रैली होती है उसका नाम देना या ना देना कोई मायने नहीं रखता है। यह भी स्पष्ट नहीं कर पाए कि रैली सरकारी है या कांग्रेस की, जबकि वे खुद भी कैबिनेट की बैठक में शामिल थे।
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बादल सरकार ने भी सरकारी खर्च पर की थी सियासी रैली
मालवा की धरती पर होने वाली बड़ी रैलियों में मोगा का गांव किलीचाहला मुख्य धुरी बन गया है। तत्कालीन अकाली सरकार ने साल 2017 के विधान सभा चुनाव से तीन महीने पहले सियासी उद्देश्य से यहां रैली का आयोजन किया था। रैली में सरकारी खर्च करने के लिए इसे 'पानी बचाओ-पंजाब बचाओ'रैली का नाम दिया था। ठीक वैसा ही इतिहास एक बार फिर दोहराता नजर आ रहा है। अंतर सिर्फ इतना है पहले रैली बादल सरकार ने कराई थी, अब कैप्टन सरकार ने करा रही है।