धार्मिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर बने परेशानी
शहर समेत कस्बों व गांवों में सुबह सवेरे धार्मिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर तेज आवाज में बजाने के लिए चाहे जिला प्रशासन की
राज कुमार राजू, मोगा : धार्मिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर सीमित आवाज में बजाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा निर्देश जारी किए गए हैं। इसके बावजूद भी धार्मिक स्थलों के संचालक ऊंची आवाज में स्पीकर बजा कर आदेशों की अनदेखी कर रहा है। इन दिनों स्कूली बच्चों की परीक्षाएं भी चल रही है। इसके कारण उनको सबसे ज्यादा परेशानी होती है।
बच्चों को होती है पढ़ाई में परेशानी
गांव बहोना निवासी मनदीप ¨सह ने बताया कि शहरों में गांव में बजने वाले तेज आवाज में लाउडस्पीकर के कारण ध्वनि प्रदूषण तो होता ही है, वहीं इन दिनों बच्चों के चल रहे परीक्षा के दौरान उनको पढ़ाई में सही एकाग्रता न मिलने के कारण उन्हें बहुत ही परेशानी होती है। उन्होंने जिला प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि बिना अनुमति के ऊंची आवाज में चलने वाले लाउंड स्पीकरों पर कार्रवाई की जाए।
बीमार बुजुर्गो को होती है सबसे ज्यादा परेशानी
समाज सेवी मनीष बेरी ने कहा कि शहर में सुबह लगभग 3 बजे से ही सभी धार्मिक स्थलों में लाउड स्पीकर को वहां के सेवादारों द्वारा ऊंची आवाज में बजाना शुरू कर दिया जाता है । इसके कारण आम लोग जो सुबह देर से उठना पसंद करते हैं उनकी नींद में खलल तो पड़ता ही है ,वहीं बीमारी से पीड़ित बुजुर्गों की समस्या झेलनी पड़ती है, तेज आवाज से बुर्जुगों में चिड़चिड़ापन बढ़ता है।
सभी धर्म के लोगों को होती है परेशानी
समाज सेवी सुरेश कुमार ने कहा कि सुबह सवेरे बजने वाले लाउडस्पीकर से सभी को परेशानी होती है। इसलिए निर्धारित की गई, ध्वनि पर ही लाउडस्पीकर का इस्तेमाल का होना चाहिए। उन्होंने अगर उनकी शिकायत करते है तो लोगों द्वारा बुरा भला भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ऐसा नियम बनाए कि लाउडस्पीकर से किसी भी धर्म के लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए।
घातक है तेज आवाज
ईएनटी माहिर डॉक्टर राजेश अत्री के अनुसार तेज आवाज से केवल सुनने की क्षमता का ही ह्रास नहीं होता बल्कि सेहत भी खराब होती है। इससे चिड़चिड़ाहट, डिप्रेशन से लेकर हार्ट अटैक तक की आशंका रहती है। इसे मापने की ईकाई डेसिबल है,आमतौर पर 15 से 20 डेसिबल तक की आवाज से कोई नुकसान नहीं होता है। 50 डेसिबल से ऊपर की आवाज परेशान करती है,60 डेसिबल से अधिक होने पर कानों को नुकसान पहुंच सकता है। 115 डेसिबल से अधिक होने पर कान के पर्दा फटने का खतरा रहता है। 150 डेसिबल से ऊपर की आवाज जानलेवा साबित हो सकती है।
बच्चों को ले सकती है टायनेटस बीमारी चपेत में:
डॉक्टर राजेश अत्री ने कहा कि कान से आवाज आने को टायनेटस बीमारी कहा जाता है। यह बीमारी पहले बुर्जुर्गाे में होती थी। लेकिन आज कम आयु में हो रही है। जिसका मुख्य कारण बच्चों द्वारा ऊंची आवाज में साउंड सुनने समेत सोने के समय कानों में हेडफोन का प्रयोग करना है। जिसके कारण आज बच्चें टायनेटस बीमारी चपेट में आ रहे है । उन्होंने कहा कि अगर हम बच्चों को बीमारी से बचाना चाहते है तो उनकी मोबाइल से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करना होगा।
बुलाएंगे बैठक-डीसी
इस संबंध में डीसी संदीप हंस ने कहा कि उनका प्रयास है कि किसी भी धर्म के व्यक्ति को कोई ठेस न पहुंचे इसके लिए वह धार्मिक स्थलों में बिना तेज आवाज में चलने वाले लाउड स्पीकरों को लेकर आगामी दिनों में धार्मिक संस्थानों के प्रबंधकों की बैठक बुलाएंगें।