ऑर्गेनिक ढंग से सब्जियां उगाकर दे रहे पर्यारवण संरक्षण का संदेश
जिले के गांव डाला निवासी अमरजीत शर्मा पिछले दस सालों से आर्गेनिक विधि से सब्जियां पैदा कर न सिर्फ परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा कर रहे हैं बल्कि पर्यावरण को दूषित होने से बचा रहे हैं। महज दो कनाल जमीन के मालिक अमरजीत शर्मा ने आर्गेनिक विधि से खेत में सब्जियों के साथ फलों के पौधे लगाकर भी नया इतिहास रचा है
सत्येन ओझा, मोगा : जिले के गांव डाला निवासी अमरजीत शर्मा पिछले दस सालों से आर्गेनिक विधि से सब्जियां पैदा कर न सिर्फ परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि पर्यावरण को दूषित होने से बचा रहे हैं। महज दो कनाल जमीन के मालिक अमरजीत शर्मा ने आर्गेनिक विधि से खेत में सब्जियों के साथ फलों के पौधे लगाकर भी नया इतिहास रचा है, पहले भाई के साथ खेत में किन्नू की बागबानी की, तीन साल तक किन्नू की बड़े पैमाने पर पैदावार की, बाद में किन्नू की बागबानी भाई के हिस्से में आने के बाद अपने हिस्से की एक कनाल जमीन में केसर की खेती कर सबको हैरान कर डाला। कश्मीर के ठंडे इलाके में पैदा होने वाली केसर को उन्होंने पंजाब में उगाकर संकेत दे दिया कि मन में दृढ़ विश्वास हो तो सब कुछ संभव है। धान की खेती वे पानी का ज्यादा दोहन होने के कारण पहले ही बंद कर चुके हैं, साथ ही दूसरे किसानों को प्रेरित कर रहे हैं कि वे समय रहते खेती में बदलाव लाएं, ताकि पर्यावरण के साथ धरती के सेहत में भी सुधार हो सके।
गांव डाला निवासी 60 साल के बुजुर्ग अमरजीत शर्मा ने बताया कि धान की पराली में आग लगने से क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण से लोगों को बीमार होते देखा था। उनके अपने परिवार में भी बीमारियां आम बात थीं, तभी से सोच लिया था कि भले ही उनके पास कम खेती है, लेकिन खेती कम होने के बावजूद वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे पर्यावरण को नुकसान हो, क्योंकि पर्यावरण को नुकसान का मतलब दूसरों को बीमारियां देने के साथ अपने परिवार को भी बीमार बनाना था, तभी उन्हें अपने गुरु गुरमीत राम रहीम जी ने एक एपल बेरी का पौधा दिया था। वहां आर्गेनिक विधि से खेती होती थी। उसी पौधे को उन्होंने गुरु की दीक्षा समझकर खेत में लगा दिया। बाद में मोगा में रहने वाले पुरुषोत्तम दास बंसल जो लंबे समय से अपने घर की छत पर आर्गेनिक विधि से सब्जियां उगा रहे थे, उनका साथ मिला तो बस उन्हें एक दिशा मिल गई, उन्होंने अपने दो कनाल के खेत में ऑर्गेनिक विधि से सब्जियां उगाने के साथ ही खेत में फल उगाना शुरू कर दिया। पहले सब्जियों के साथ किन्नू की बागबानी की। बाद में केसर की खेती की। हालांकि पहली बार में उन्हें धोखा हुआ उन्हें जो बीज कश्मीरी केसर का बताकर दिया गया था, वह बीज अमेरिकन केसर का मिला, उसकी बाजार में ज्यादा कीमत नहीं लगी, लेकिन आने वाले समय में वे असली बीज लाकर दोबारा कश्मीरी केसर को खेतों में उजागर ये साबित कर देंगे कि सोच सकारात्मक हो तो पंजाब का किसान खेती को घाटे से भी उबार सकता है और पर्यावरण की भी सुरक्षा कर सकता है।