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सिर्फ मनुष्य जीवन में ही खुलते हैं मोक्ष के दरवाजे: साध्वी शुभिता

जैन स्थानक में विराजमान साध्वी शुभिता महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि मानव जीवन परम दुर्लभ है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Aug 2021 10:19 PM (IST)Updated: Tue, 03 Aug 2021 10:19 PM (IST)
सिर्फ मनुष्य जीवन में ही खुलते हैं मोक्ष के दरवाजे: साध्वी शुभिता
सिर्फ मनुष्य जीवन में ही खुलते हैं मोक्ष के दरवाजे: साध्वी शुभिता

संवाद सूत्र, मौड़ मंडी: जैन स्थानक में विराजमान साध्वी शुभिता महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि मानव जीवन परम दुर्लभ है। जहां आज जगत में कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष, चितामणी और देव दर्शन का मिलना सुलभ नहीं है, लेकिन फिर भी जप-तप से कोई व्यक्ति इसे हासिल कर सकता है। पर मानव जीवन किसी-किसी को ही पुण्य से ही प्राप्त होता है।

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उन्होंने कहा कि अनंत जन्मों के पुण्यों का संचय होता है, तब हमें ये दुर्लभ मानव जीवन मिलता है। इस मानव जीवन का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। ये देवता भी इस मानव जीवन को पाने के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि पशु और देव यानि से मोक्ष नहीं पाया जा सकता, सिर्फ मनुष्य जीवन में मोक्ष के दरवाजे खुले हैं। सुखी रहना है तो इंद्रियों को वश में रखो: डा. राजेंद्र मुनी जैन सभा के प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने प्रवचन करते हुए कहा कि वास्तविक सुख वह है, जिसमें किसी आलंबन सहयोग की आवश्यकता नहीं रहती। उन्होंने कहा कि दुनिया के प्राप्त तमाम सुखों में हर किसी को सुखी रहने के लिए किसी न किसी साधन की आवश्यकता रहती है।

उन्होंने कहा कि इंद्रियों के तमाम कार्यों में चाहे वो श्रवण करने के, देखने के, सूंघने के खान-पान के या घूमने फिरने में जो हमारा मन सुख का अनुभव करता है, उसमें बाहर की वस्तुएं पदार्थ चाहिए। अगर ये संसाधन न हों तो हमारा मन दुख का अनुभव करता है। इसीलिए प्रभु महावीर ने इंद्रिय जन्य सुखों को अंत दुख का ही रूप दिया है। आत्मिक सुख वह है जिसमें किसी की भी आवश्यकता नहीं रहती, ध्यान मौन साधन धार्मिक चितन मनन से संबंधित रहता है। अंत इसे आध्यत्मिक सुख कहा गया है। आज का मानव अज्ञानतावश अपना संपूर्ण जीवन शरीर के इर्द-गिर्द ही बिताता चला जा रहा है। ज्ञानियों ने शरीर व इंद्रियों के भीतर आत्म भाव को जागृत करने का संदेश दिया है। साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा आगम का स्वाध्याय कराते हुए कहा गया कि जीवन में खान-पान की शुद्धता चाहिए। सात्विक आहार से तन, मन में शांति का अनुभव होता है। इसके विपरीत तामसिक आहार से क्रोध आदि विकार व तनाव उत्पन्न होते हैं। इसी के साथ दान के विभिन्न प्रकारों पर प्रकाश डालते हुए निस्वार्थ भावना से दिया गया दान ही सफल व सार्थक होता है। सभा के महामंत्री उमेश जैन ने आवश्यक सूचनाएं देते हुए सबका धन्यवाद किया।


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